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________________ वसति (आवास) सम्बन्धी विधि - नियम... 249 में असुविधा का अनुभव हो सकता है। सचित्त पानी और अग्नि वाले स्थान में रहने पर अपरिपक्व (नवदीक्षित) साधु-साध्वी को उनके सेवन या गर्म-गर्म भोजन करने की अभिलाषा होना भी संभावित है। इस नियम से यह स्पष्ट होता है कि जहाँ साधु-साध्वी का उपाश्रय हो उस स्थान पर नल, संडास, बाथरूम आदि की सुविधा कदापि नहीं होनी चाहिए, वहाँ गर्म पानी नहीं बनना चाहिए और दर्शनार्थियों, पुजारियों या मुनीम आदि संघीय कर्मचारियों को भी नहीं रुकवाना चाहिए । के घर 2. गृहस्थ गृह मध्यमार्गी स्थान - जहाँ आने-जाने का मार्ग गृहस्थ के अन्दर से होकर जाता हो ऐसे स्थान पर भी साधु को निवास नहीं करना चाहिए। हानि - मध्यमार्गवाली वसति में रहने पर लगभग उन सभी हानियों की संभावनाएँ रहती हैं, जो गृहस्थ संसक्त स्थान में रहने से होती हैं । 3. आक्रोशयुक्त स्थान -जिस स्थान या मकान के किसी भाग में या उसके आस-पड़ोस में पारिवारिक सदस्य या अन्य कोई लड़ते-झगड़ते रहते हों, मारपीट करते हों, गाली-गलौच करते हो वहाँ साधु न ठहरें । हानि - आक्रोश युक्त स्थान में रहने से चित्त में संक्लेश पैदा होता है। इससे साधु के मन में चंचलता, पक्षपात और अशान्ति पैदा हो सकती हैं। 4. अभ्यंगादि युक्त स्थान - जहाँ पुरुष और स्त्रियाँ एक-दूसरे के शरीर पर तेल आदि चुपड़ रही हों अथवा मालिश कर रही हों, वह स्थान साधु के लिए वर्जनीय है। 5. उद्वर्तनादि युक्त स्थान - जहाँ पुरुष और स्त्रियाँ एक-दूसरे के शरीर पर नाना प्रकार के उबटन लगा रही हों । 6. स्नानादि युक्त स्थान - जहाँ पुरुष और स्त्रियाँ जल क्रीड़ा कर रही हों, एक दूसरे को नहला रही हों। 7. अश्लील क्रियादि युक्त स्थान - जहाँ पुरुष और स्त्रियाँ अश्लील वार्तालाप कर रहे हों या अश्लील मुद्रा में रहते हों। 8. सचित्र स्थान - जहाँ दीवारों पर स्त्री-पुरुषों के श्रृङ्गारिक चित्र हों या अन्य लुभावने दृश्य टंगे हुए हों उपर्युक्त सभी स्थानों पर साधु-साध्वी को रहने का निषेध किया गया है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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