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242...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन निर्माण में जो आरम्भ-समारम्भ होता है, उसके दोष का भागी वह साधु भी होता है। यह अर्हत वचन है कि साधु-साध्वी के निमित्त बनाये गये या खरीदे गये आवासों में उन्हें नहीं रुकना चाहिए। 3. औद्देशिक दोषों से युक्त स्थान
जो स्थान बहुत से श्रमण-ब्राह्मण-अतिथि-कृपण एवं याचकों के उद्देश्य से बनाया गया हो, खरीदा गया हो अथवा पूर्वोक्त अन्य दोषों से दूषित हो, वह औद्देशिक कहलाता है। साधु-साध्वी का स्थान औद्देशिक दोष से भी रहित होना चाहिए। यदि इस प्रकार का स्थान पुरुषांतरकृत (अन्य व्यक्ति को सौंप दिया गया) हो या अपुरुषांतरकृत हो, सेवित (उपयोग में लिया गया) हो या अनासेवित हो, वहाँ साधु-साध्वियों को रहने का निषेध है।
हानि- श्रमण-ब्राह्मणों आदि को गिन-गिन कर उनके लिए जो भवन या स्थान बनाये जाते हैं, वे विशेष रूप से औद्देशिक (आरम्भ-समारंभ से युक्त) होते हैं। अत: उनमें ठहरने से जीव हिंसा का दोष लगता है। 4. संस्कारित दोषों से युक्त स्थान
जो स्थान या आवास साधु-साध्वी के लिए संस्कारित किया गया हो अथवा साधु-साध्वी के उद्देश्य से निर्मित आवास की मरम्मत की गई हो, उसे चारों ओर से काष्ठ से या चटाइयों से आच्छादित किया गया हो, खम्भों पर बांसों को तिरछा बांधा गया हो, घास-दर्भ आदि से ऊपर का भाग आच्छादित किया गया हो, आंगन को गोबर से लीपा गया हो, संवारा गया हो, घिसा गया हो, घिस-घिस कर उसे चिकना बनाया गया हो, ऊबड़-खाबड़ भाग को समतल किया गया हो, दुर्गन्ध मिटाने के लिए धूप आदि से उसे सुगन्धित किया गया हो ऐसा स्थान संस्कारित कहलाता है। यदि संस्कारित स्थान पुरुषान्तरकृत (अन्य व्यक्ति को सौंप दिया गया) हो या उस स्थान का किसी अन्य के द्वारा उपयोग किया जा रहा हो तो साधु-साध्वी को वहाँ रहना कल्पता है। अन्यथा ऐसे स्थान भी वर्जनीय होते हैं। __ हानि- किसी भी स्थान को उक्त प्रकार से संस्कारित करने पर आरंभ, समारंभ, जीवहिंसा, अजयणा, अपकायादि जीवों की विराधना आदि अनेक दोष लगते हैं। यदि साधु अपने लिए संस्कारित किये गये स्थान पर रहता है तो वह उन सभी दोषों का भागीदार होता है।