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वसति (आवास) सम्बन्धी विधि-नियम...241 गवेषणापूर्वक वसति (आवास स्थान) की याचना की जाती थी। आज भी ग्रामीण इलाकों एवं पूर्वांचल आदि कुछ प्रदेशों में पदयात्रा के दौरान वसति गवेषणा करनी पड़ती है। इससे यह सिद्ध होता है कि वसति सम्बन्धी विधि-नियम सार्वकालिक हैं। वसति शब्द का प्रचलित अर्थ
वसति जैन आचार का बहु परिचित शब्द है। जैनागमों में साधु-साध्वी के रहने योग्य स्थान को ‘वसति' शब्द से अभिहित किया गया है। वसति का सामान्य अर्थ है- रहने योग्य स्थान। घर, निवास, आवास आदि भी वसति के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। मुनियों के लिए कौनसे स्थान वर्जित और क्यों?
जैन साधु-साध्वियों के लिए रहने योग्य स्थान कैसा हो और उन्हें किस प्रकार के स्थानों का वर्जन करना चाहिए? इस सम्बन्ध में आगमकारों ने सम्यक् प्रकाश डाला है। आचारांगसूत्र के अनुसार यह वर्णन निम्न प्रकार है-4 1. जीव-जन्तुओं से युक्त स्थान ___जैन श्रमण का आवास स्थल क्षुद्र जीव-जन्तुओं से रहित होना चाहिए यानी जो स्थान अण्डों से युक्त हो, सचित्त मिट्टी, सचित्त पानी, लीलन-फूलन, मकड़ी आदि के जालों से युक्त हो, ऐसे जीव-संकुल स्थान में साधु-साध्वी को नहीं ठहरना चाहिए। ____ हानि- जैन साधक पूर्ण अहिंसा का पालक और आराधक होता है। जीवसंकुल स्थान में ठहरने से क्षुद्र जीवों की हिंसा की संभावना रहती है, अतएव ऐसे स्थानों को वर्जनीय माना गया है। 2. आधाकर्मी आदि उद्गम-दोषों से युक्त स्थान
जो स्थान किसी मुनि के लिए विशेष तौर से बनाया गया हो, खरीदा गया हो, उधार लिया गया हो, बलात किसी से छीना गया हो, साझेदारों द्वारा सर्वानुमति से दिया गया न हो, तम्बू आदि अन्य स्थान से लाकर खड़ा किया गया हो, ऐसे आधाकर्मी स्थान का साधु-साध्वी उपयोग न करें अर्थात जैन श्रमण का आवास स्थल उक्त आधाकर्मादि दूषण से रहित होना चाहिए।
हानि - जो आवास साधु के उद्देश्य से तैयार किया जाता है और उसके