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192...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन प्रमार्जन करें। काजा विधिपूर्वक परिष्ठापित करें। मृत कलेवर आदि हों तो उनका यतनापूर्वक परिष्ठापन करें। फिर उपाश्रय में आकर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करके वसति प्रवेदन करें।
स्थापनाचार्य प्रतिलेखन-तत्पश्चात एक खमासमण देकर 'इच्छकार भगवन्! पसाय करी पडिलेहणा पडिलेहावोजी' इतना कहकर पूर्वोक्त विधि पूर्वक स्थापनाचार्य की प्रतिलेखना कर, उन्हें उच्च आसन पर स्थापित करें। ___ सज्झाय-तदनन्तर एक खमासमण देकर-‘इच्छा.संदि.भगवन्! सज्झाय संदिसावेमि' कहें। पुन: एक खमासमण देकर-'इच्छा.संदि.भगवन्! सज्झाय करेमि' इतना कहकर पूर्ववत 'धम्मो मंगल' पाठ की पाँच गाथाएँ बोलें।
प्रत्याख्यान-उसके बाद दिवसचरिम चौविहार-पाणहार आदि का प्रत्याख्यान ग्रहण करना हो तो गुरु को द्वादशावर्त्तवन्दन करें। फिर उसी समय भक्त-पानी का संवर करना हो तो 'इच्छकार भगवन्! पसाय करी पच्चक्खाण करावो' इतना निवेदन कर गुरु मुख से प्रत्याख्यान करें। यदि जल आदि ग्रहण की इच्छा हो तो चतुर्विध आहार का प्रत्याख्यान बाद में करें। उस समय ‘मुट्ठिसहियं' का प्रत्याख्यान करें-ऐसी परवर्ती परम्परा है। मुट्ठिसहियं का प्रत्याख्यान किया हो तो जल लेने से पूर्व नमस्कार मन्त्र अवश्य गिनें।
उपधि प्रतिलेखन-तत्पश्चात एक खमासमण पूर्वक वन्दन करके कहें'इच्छा. संदि.भगवन्! ओही पडिलेहणं संदिसावेमि'। पुन: दूसरा खमासमण देकर बोलें-'इच्छा.संदि.भगवन्! ओही पडिलेहणं करेमि' इस तरह उपधि प्रतिलेखना के लिए दो आदेश ग्रहण करें। फिर साधुविधिप्रकाश के अनुसार वस्त्र-कंबल आदि उपकरणों की पूर्वोक्त क्रम से प्रतिलेखना करें। उसके बाद रजोहरण की प्रतिलेखना-डोरा, ऊनी ओघारिया, सूती ओघारिया, रजोहरण दसियां और दंडी इस क्रम से करें। फिर आसन पर स्थिर होकर रजोहरण बाँधे। यदि उपवास हो तो उस दिन द्वादशावर्त्तवन्दन न करें तथा रजोहरण की प्रतिलेखना के बाद कंदोरा-चोलपट्ट की प्रतिलेखना करें।
__उसके पश्चात दंडा स्थान की प्रतिलेखना करके, दंडे की प्रमार्जना करें। तत्पश्चात पूर्वोक्त विधिसहित पात्रोपकरण की प्रतिलेखना करें। फिर वस्त्रादि प्रतिलेखना के द्वारा एकत्रित हुए कचरे को एकान्त भूमि में परिष्ठापित करें। कुछ जन वस्त्रादि प्रतिलेखना के पश्चात वसति की प्रमार्जना करते हैं पहले नहीं, जबकि