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190...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन (आहार-पानी-वस्त्र-पात्रादि की प्राप्ति) के लिए जा रहे हैं। जो भी वस्तु निर्दोष रूप से प्राप्त होगी, ग्रहण करेंगे। उसके बाद पुन: शिष्य कहें-'आज अमुक घर शय्यातर है।' ऐसा कहने के बाद गुरु को वन्दन करें। फिर चारित्र पर्याय के क्रम से सभी साधुओं को वन्दन करें। उसके पश्चात भिक्षाटन का समय न हुआ हो तो स्वाध्याय करें। फिर विधिपूर्वक आहार के लिए जायें। तुलना
उपयोग विधि का यह स्वरूप पंचवस्तुक, विधिमार्गप्रपा, साधुविधिप्रकाश आदि ग्रन्थों में मिलता है। उनमें कुछ असमानताएँ इस प्रकार हैं- साधुविधिप्रकाश के मत से उपयोग निमित्त कायोत्सर्ग में एक नमस्कार मन्त्र का चिन्तन करना चाहिए।65 विधिमार्गप्रपा में भी नमस्कार मन्त्र के स्मरण का ही निर्देश है।66 किन्तु पञ्चवस्तुक के कर्ता ने इस संदर्भ में दो मत प्रस्तुत किये हैं। एक मत के अनुसार नमस्कार मन्त्र का चिन्तन कर जिस मुनि को जैसा आहार ग्रहण करना हो, उसे उस तरह के आहार का चिन्तन करना चाहिए। दूसरे मत के अनुसार 'मैं केवल अपने लिये ही नहीं अपितु गुरु, वृद्ध, बाल एवं नवदीक्षित साधु आदि के लिए भी आहार ग्रहण के लिए जाता हूँ' ऐसा चिन्तन करना चाहिए।67
साधुविधिप्रकाश एवं प्रचलित परम्परा में उपयोग निमित्त कायोत्सर्ग करने के पश्चात नमस्कार मन्त्र बोलकर आहारादि ग्रहण की अनुमति के. आदेश माँगने का उल्लेख है, जबकि विधिमार्गप्रपा में कायोत्सर्ग के पश्चात गुरु द्वारा 'ओं नमो भगवती कामेश्वरी अन्नं पूर्णं भवतु स्वाहा' यह मन्त्र बोलने का भी निर्देश है। यह आचार्य जिनप्रभसूरि की गुरु परम्परागत सामाचारी ज्ञात होती है।68
उपयोग विधि में कायोत्सर्ग तक की विधि पहले गुरु द्वारा की जाये, फिर शिष्यवर्ग द्वारा सम्पन्न की जानी चाहिए, ऐसा साधुविधिप्रकाश में उल्लेख है जो गुरु की श्रेष्ठता दर्शाता है। किन्तु वर्तमान में लगभग यह विधि गुरु एवं शिष्य एक साथ करते हैं।
सायंकालीन प्रतिलेखना विधि जैन साधुओं के लिए मुख्य रूप से दिन में तीन बार प्रतिलेखना करने का विधान है। उसमें प्रात: एवं सायं दोनों समय विशेष क्रिया विधि होती है।
यह विधि दिन के चतुर्थ प्रहर के प्रारम्भ में की जाती है। इस विधि के