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178...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन काया का आराधक होता है। इसलिए प्रतिलेखना उपयोग एवं विधिपूर्वक करनी चाहिए।42
पंचवस्तुक में यह भी कहा गया है कि प्रतिलेखना न करने से जिनाज्ञा का भंग, अनवस्था, छह काय विराधना और मिथ्यात्व आदि दोष लगते हैं। इसी के साथ अविधिपूर्वक प्रतिलेखना करने से भी पूर्वोक्त दोष लगते हैं अत: गुरु के निर्देशानुसार प्रतिलेखना की सही विधि सीखनी चाहिए और वह शुद्ध रीति से भी करनी चाहिए। प्रतिलेखना प्रायोगिक क्रिया है। इसे पढ़कर या सुनकर नहीं समझा जा सकता।43 प्रतिलेखक मुनि के प्रकार एवं क्रम
वस्त्र प्रतिलेखना करने वाले मुनि दो प्रकार के होते हैं1. तपस्वी (उपवास आदि करने वाले) और 2. आहारार्थी।
दोनों ही प्रतिलेखक सर्वप्रथम मुखवस्त्रिका और उससे अपने शरीर का प्रमार्जन करें। तत्पश्चात तपस्वी मुनि, गुरु, अनशनधारी, रूग्ण, नवदीक्षित आदि के उपकरणों की प्रतिलेखना करें। फिर गुर्वाज्ञा पूर्वक अनुक्रम में पात्र, मात्रक, अन्य उपधि और अन्त में चोलपट्टक की प्रतिलेखना करें।
भक्तार्थी मनि सर्वप्रथम अपने चोलपट्टक, मात्रक, पात्र आदि की प्रतिलेखना करने के पश्चात गुरु आदि की उपधि की प्रतिलेखना करें। फिर गुरु की अनुमति प्राप्त कर शेष वस्त्र-पात्रों की प्रतिलेखना करें और अन्त में रजोहरण की प्रतिलेखना करें।44 वस्त्र प्रतिलेखन का काल
प्रात:काल में वस्त्र की प्रतिलेखना कब करनी चाहिये? इस सम्बन्ध में अनेक मत-मतान्तर हैं। आचार्य हरिभद्रसूरि ने पंचवस्तुक में इस विषय का अच्छा खुलासा किया है। उन्होंने वृद्ध परम्परा के अनुसार प्रतिलेखना के काल सम्बन्धी अनेक मत प्रस्तुत किये हैं-उनमें किन्हीं आचार्य के मतानुसार जब कुकड़ा (मुर्गा) बोले, तब प्रतिक्रमण करके प्रतिलेखना करनी चाहिए। आचार्यों के मन्तव्यानुसार अरुणोदय हो तब प्रतिलेखना करनी चाहिए। ___ • कुछ आचार्यों के अभिमतानुसार जब प्रकाश हो तब प्रतिलेखना करनी चाहिए।
• एक आचार्य का कहना है कि जब साधुओं का मुख परस्पर एक-दूसरे