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... जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
प्रतिलेखना करना।
3. मोसली - प्रतिलेखन करते समय वस्त्र को ऊपर, नीचे, तिरछे किसी वस्त्र या पदार्थ से संघट्टित करना ।
4. प्रस्फोटना- प्रतिलेखन करते समय धूल धूसरित वस्त्र को गृहस्थ की तरह वेग से झटकना।
5. विक्षिप्ता - प्रतिलेखित वस्त्रों को अप्रतिलेखित वस्त्रों के साथ मिला देना अथवा वस्त्र के आंचल को इतना ऊँचा उठाना कि उसकी प्रतिलेखना न हो सके।
6. वेदिका - इसके पाँच प्रकार हैं
(i) ऊर्ध्ववेदिका-दोनों घुटनों पर हाथ रखकर प्रतिलेखन करना । (ii) अधोवेदिका-दोनों घुटनों के नीचे हाथ रखकर प्रतिलेखन करना । (iii) तिर्यग्वेदिका -दोनों घुटनों के बीच में हाथ रखकर प्रतिलेखन करना । (iv) उभयवेदिका-दोनों घुटनों को दोनों हाथों के बीच रखकर प्रतिलेखन करना।
(v) एक वेदिका-एक घुटने को दोनों हाथों के बीच रखकर प्रतिलेखन करना।
जैनाचार्यों ने प्रतिलेखना अविधि से सम्बन्धित भी सात दोष बताये हैं। प्रतिलेखना करते समय इन दोषों से सतर्क रहना चाहिए। वे दोष निम्न हैं- 39 1. प्रशिथिल - वस्त्र को ढीला पकड़ना ।
2. प्रलम्ब - वस्त्र को इस तरह पकड़ना कि उसके कोने नीचे लटकते रहें। 3. लोल - प्रतिलेख्यमान वस्त्र का हाथ या भूमि से संघर्षण करना । 4. एकामर्शा - वस्त्र को बीच में से पकड़कर एक दृष्टि में ही समूचे वस्त्र को देख लेना।
5. अनेक रूप धुनना- प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को अनेक बार (तीन बार से अधिक) झटकना अथवा अनेक वस्त्रों को एक साथ झटकना। 6. प्रमाण प्रमाद - प्रस्फोटन और प्रमार्जन के लिए नौ-नौ बार करने का जो परिमाण बतलाया है, उसमें प्रमाद करना ।
7. गणनोपगणना - प्रस्फोटन और प्रमार्जन के निर्दिष्ट परिमाण में शंका होने पर उसकी गिनती करना।