________________
168...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन मिथ्यात्व आदि दोष लगते हैं। यदि पात्रादि की अविधिपूर्वक प्रतिलेखना करते हैं तो भी उपर्युक्त दोष लगते हैं।20
दिन के इस भाग को उग्घाड़ा पौरुषी भी कहते हैं। परवर्ती ग्रन्थों में उग्घाड़ा पौरुषी की विधि के पश्चात पात्र प्रतिलेखना करने का निर्देश है। वर्तमान में नवकारसी करने वाले साधु-साध्वी एक बार तो नवकारसी के आने पर पात्र प्रतिलेखन कर लेते हैं फिर पौरुषी के समय पुन: पात्र प्रतिलेखना करते हैं। दूसरी बार की पात्र प्रतिलेखना आगम आचरणा के रूप में की जाती है। प्राचीन काल में साधु-साध्वी मध्याह्न वेला में एक बार भिक्षार्थ जाते थे। अत: उन्हें भोजन ग्रहण के पूर्व तथा पश्चात ऐसे दो बार पात्र प्रतिलेखना करनी होती थी। वर्तमान में होने से तीन चार बार भी आहारादि का ग्रहण करते हैं अत: उतनी ही बार पहले और बाद में पात्र प्रतिलेखना करना चाहिए।
पात्र प्रतिलेखन का क्रम- उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार दिन की प्रथम पौरुषी का चतुर्थ भाग शेष रहने पर पात्र सम्बन्धित तीन उपकरणों की प्रतिलेखना करें। इनका क्रम इस प्रकार बताया गया है-1. सर्वप्रथम मुखवस्त्रिका (पूंजणी) का 2. फिर गोच्छग का और 3. फिर अंगुलियों से गोच्छग पकड़ कर पटल आदि पात्र सम्बन्धी वस्त्रों का प्रतिलेखन करें।21
ओघनियुक्ति में पात्र से सम्बन्धित सात उपकरणों (पात्र नियोग) का निर्देश है। इनकी प्रतिलेखना अनुक्रमश: करें- 1. गोच्छग (पात्र के ऊपर ढंकने का ऊनी वस्त्र) 2. पटल (भिक्षाचर्या के समय पात्र ढंकने हेतु उपयोगी वस्त्र) 3. पात्रकेसरिका (प्रमार्जन उपयोगी चरवली-पूंजणी) 4. पात्रबंध (पात्र बाँधने का वस्त्र, झोली) 5. पात्र 6. रजस्त्राण (रजकण आदि से बचाव करने हेतु पात्र लपेटने का वस्त्र अथवा चूहों, जीव जन्तुओं, रज या वर्षा के जलकण से बचाने का वस्त्रोपकरण) और 7. पात्रस्थापन (पात्र को रज आदि से बचाने हेतु नीचे के गुच्छे)।22 ___ पात्र प्रतिलेखना कितनी बार? यतिदिनचर्या के मतानुसार पात्र सम्बन्धी उपकरणों की दो बार प्रतिलेखना की जानी चाहिए। पहली प्रतिलेखना दिन के प्रथम प्रहर के चतुर्थ भाग में करें और दूसरी प्रतिलेखना दिन के चतुर्थ प्रहर के प्रथम भाग में करें। दूसरी बार की प्रतिलेखना करते समय पात्रों को बाँधकर रखना चाहिए।23