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उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...151 साधुविधिप्रकाश आदि विधि ग्रन्थों में भी इन उपकरणों का नामोल्लेख है।
निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो आचारांगसूत्र में पाँच, उत्तराध्ययनसूत्र में तीन, व्यवहारसूत्र में ग्यारह और ओघनियुक्ति में बारह, चौदह एवं पच्चीस उपकरणों का उल्लेख प्राप्त होता है। परवर्ती जैनाचार्यों ने ओघनियुक्ति का ही अनुकरण किया है। वर्तमान में इनमें से कुछ उपकरण अप्रचलित हैं तो कुछ देशकालगत स्थिति के प्रभाव से नये भी जुड़ गये हैं। तुलनात्मक विवेचन
उपधि-उपकरण के सन्दर्भ में तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होता है कि यह विवरण उपलब्ध साहित्य में प्राय: समान रूप से है। उपधि विषयक मुख्य दो भेदों एवं सामान्य तीन प्रकारों का उल्लेख ओघनियुक्ति आदि में एक समान है।
जिनकल्पी के लिए 12, सामान्य मुनि के लिए 14 और साध्वी के लिए 25 उपकरणों का निर्देश भी उत्तरवर्ती ग्रन्थों में समान रूप से है। कौनसी उपधि किस प्रयोजन को लेकर स्वीकार की गई है, इसका सामान्य वर्णन पंचवस्तुक87, प्रवचनसारोद्धार88 आदि प्रामाणिक ग्रन्थों में है तथा इसका विस्तृत विवेचन पंचवस्तुक टीका89 एवं प्रवचनसारोद्धार टीका में किया गया है।
दिगम्बर ग्रन्थों का अवलोकन किया जाए तो वहाँ प्रवचनसार में यथाजात (नग्नत्व), गुरुवचन (गुर्वाज्ञानुसार प्रवृत्ति), विनय (गुणीजनों एवं पूज्यजनों के प्रति विनम्रभाव रखना) और सूत्रों का अध्ययन इन चार को उपकरण बतलाया गया है।91 मलाचार में उपधि को चार भागों में वर्गीकृत किया गया है- 1. ज्ञानोपधिशास्त्र आदि, 2. संयमोपधि- पिच्छिका आदि 3. शौचोपधि-कमण्डलु आदि और 4. श्रामण्य योग्य अन्य उपधि-पुस्तक, संस्तर आदि।92 उपसंहार
जो पात्र आदि साधन रत्नत्रय की आराधना में सहयोगी हों, वे उपकरण कहलाते हैं। यदि श्रमण विवेकपूर्वक उपकरणों का उपयोग न करे तो वे उसके लिए कर्मबन्धन में हेतुभूत हो सकते हैं। इसलिए उपधि का उपयोग सावधानीपूर्वक करना चाहिए। कोई भी उपधि का संग्रह उसके लक्ष्य को ध्यान रखते हुए करें क्योंकि वही उपधि सम्यक चारित्र का साधन बनती है। परिमाण