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150...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन सा वस्त्र खण्ड था जो नग्नता छिपाने के लिए उपयोग में लिया जाता था। आचारांगसूत्र में इसे 'ओमचेल' अर्थात छोटा वस्त्र कहा गया है।84 चोलपट्टक मूलत: चूलपट्ट से बना है, जिसका अर्थ भी छोटा कपड़ा या वस्त्रखण्ड ही होता है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने मुनियों के द्वारा अकारण कटिवस्त्र धारण करने की आलोचना की है। वर्तमान की श्वेताम्बर परम्परा में घुटनों के नीचे टखनों तक भी अधोवस्त्र धारण किया जाता है, जिसका नाम भी चोलपट्टक है। इससे लगता है चोलपट्ट के आकार-प्रकार में क्रमश: अभिवृद्धि हुई है।
जहाँ तक साध्वियों के पच्चीस उपकरणों का प्रश्न है, उनमें 13 उपकरणों का विकास क्रम पूर्ववत ही समझ लेना चाहिए। शेष बारह उपकरण भी ईसा की दूसरी शती तक अस्तित्व में आ चुके थे और वे उपकरण लगभग लज्जा निवारणार्थ ही धारण किये गये। ___ जहाँ तक दिगम्बर परम्परा का सवाल है वहाँ भगवती आराधना टीका में अपराजित ने मुनि के चौदह उपकरणों का उल्लेख तो किया है85 किन्तु ये चौदह उपकरण उन्हें स्वीकार्य नहीं थे। जबकि इस ग्रन्थ रचना (नवीं शताब्दी) के पूर्व श्वेताम्बर परम्परा में ये स्वीकृत हो चुके थे। यापनीय परम्परा में इनमें से केवल प्रतिलेखन और पात्र, वह भी केवल शौच हेतु जल ग्रहण के लिए स्वीकृत किये गये। इन्होंने प्रतिलेखन को संयमोपधि और पात्र को शौचोपधि के रूप में मान्य किया है। उनके अनुसार आगम और नियुक्ति आदि में जिन चौदह उपकरणों की चर्चा है, वह केवल आपवादिक स्थिति के लिए है।
जहाँ तक आवश्यक उपकरणों का प्रश्न है, श्वेताम्बर परम्परा मुख्यत: दो उपकरण अनिवार्य मानती है- एक रजोहरण और दूसरा मुखवस्त्रिका। दिगम्बर परम्परा में पिच्छी और कमण्डलु इन दो उपकरणों को आवश्यक माना गया है।86 . ओघनियुक्ति, पंचवस्तुक और प्रवचनसारोद्धार आदि में समस्त प्रकार की उपधियों को औधिक (नित्योपयोगी) और औपग्राहिक (कारण विशेष में उपयोगी) इन दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक के जघन्य, मध्यम एवं उत्कृष्ट ऐसे तीन-तीन भेद किये गये हैं तथा प्रत्येक उपधि के प्रयोजन भी बताये गये हैं। इससे कहा जा सकता है कि विक्रम की 5वीं शती से लेकर 12वीं शती तक इस विषय पर बहुत कुछ लिखा गया। इसके पश्चात आचारदिनकर,