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उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...149 भद्रबाहु के द्वारा रचित छेद सूत्रों में उनका उल्लेख कैसे आ गया। लगता है कि छेद सूत्रों एवं ओघनियुक्ति काल में कुछ संशोधन या प्रक्षेप हुए हैं।
उपकरणों का सुव्यवस्थित एवं सर्वाधिक विकसित स्वरूप ओघनियुक्ति को छोड़कर अन्य टीका ग्रन्थों में लगभग उपलब्ध नहीं होता है।
ओघनियुक्ति में जिनकल्पी के लिए 12, सामान्यमुनि के लिए 14 और साध्वी के लिए 25 उपकरणों का उल्लेख है।81 सामान्य मुनि के लिए जो चौदह उपकरण निश्चित किये गये हैं, उन उपकरणों की सर्वप्रथम चर्चा प्रश्नव्याकरणसूत्र में मिलती है, किन्तु वर्तमान में उपलब्ध प्रश्नव्याकरणसूत्र लगभग सातवीं शती की रचना है।82 अत: उसका कथन ऐतिहासिक दृष्टि से परवर्ती है। विद्वद्वर्य डॉ. सागरमल जैन के मतानुसार नियुक्तियों का रचनाकाल ईसा की लगभग दूसरी शती माना जा सकता है।
ईसा की प्रथम-दूसरी शती में जैन श्रमणों के वस्त्रादि उपकरणों की स्थिति क्या थी, इसका पुरातात्त्विक प्रमाण हमें इसी काल के मधुरा के अंकनों से मिल जाता है। उसमें चतुर्विध संघ के अंकनों में मुनियों एवं साध्वियों के विविध अंकन हैं। उनमें निम्न उपकरणों का स्पष्ट संकेत है- 1. कम्बल 2. मुखवस्त्रिका 3. पादपोंछन/प्रतिलेखन/रजोहरण 4. पात्र और 5 पात्र रखने की झोली। मुनियों के जो अंकन हैं, उनमें एक हाथ में मुखवस्त्रिका तथा कलाई पर तह किया हुआ कम्बल प्रदर्शित है जिससे किन्हीं अंकनों में उनकी नग्नता छिप गई है और किन्हीं में वह नहीं भी छिपी है। इन अभिलेखों में उपर्युक्त चौदह उपकरणों में से पाँच का स्पष्ट अंकन है, जिनका नामोल्लेख ऊपर हो चुका है। शेष पात्र स्थापन, पात्रपटल, रजस्त्राण और गुच्छग इन उपकरणों का विकास पात्र रखने की परम्परा के साथ हुआ प्रतीत होता है। मात्रक मल-मूत्र विसर्जन हेतु रखा जाता है। इसे रखने की अनुमति आर्यरक्षित ने प्रथम-दूसरी शती में ही दी थी। इस प्रकार कुल दस उपकरणों के चिह्न प्राप्त होते हैं। शेष तीन प्रच्छादक (चादर) और एक चोलपट्टक इन चार का अंकन मथुरा के स्थापत्य में पहलीदूसरी शती तक कहीं नहीं मिलता है। यद्यपि आचारांग में अधिकतम तीन वस्त्रों के रखने का उल्लेख होने से यह माना जा सकता है कि वस्त्र रखने की परम्परा भी प्राचीन है।83
जहाँ तक चोलपट्ट का प्रश्न है वह प्रारम्भ में लंगोटी के समान एक छोटा