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140...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन लपेटने का ऊनी वस्त्र भी एक हाथ लम्बा होना चाहिए। इस तरह सूती-ऊनी दोनों ओघारिया एक-एक हाथ लम्बा और चौड़ा होना चाहिए। ____6. पादपोंछन- प्राचीन काल में ‘पादपोंछन' शब्द अधिक प्रचलित था और इस उपकरण का प्रयोग भी पर्याप्त रूप से होता था।
यह मुनियों का औपग्रहिक उपकरण है। जीर्ण या फटे हुए कम्बल का एक हाथ लम्बा-चौड़ा टुकड़ा पादपोंछन कहलाता है। उत्तराध्ययनसूत्र (17/7) में इसे 'पायकंबल' कहा गया है। टीकाकार ने इसका अर्थ ‘पादपोंछन' किया है।
आचारांगसूत्र के अनुसार रात्रि में या विकाल में श्रमण को दीर्घ शंका का वेग यदि प्रबल हो और प्रतिलेखित उच्चार प्रश्रवण भूमि तक पहँचना शक्य न हो तो उपाश्रय के किसी एकान्त विभाग में मल विसर्जन करते समय पादपोंछन का उपयोग कर सकते हैं। यदि स्वयं का पादपोंछन न हो तो सहवर्ती किसी श्रमण का पादपोंछन लेकर भी उसका उपयोग कर सकते हैं। ___सामान्यतया पैरों पर लगी हुई अचित्त रज पोंछने, रजोहरण से पादपोंछन का प्रमार्जन कर उस पर बैठने एवं मलविशोधन करने में पादपोंछन का उपयोग करते हैं। वर्तमान में इस नाम के उपकरण का प्रयोग नहीं देखा जाता। संभवत: आज जिसे आसन कहते हैं, वह पादपोंछन का ही परिवर्तित स्वरूप प्रतीत होता है, क्योंकि पादपोंछन की भांति यह भी बैठने एवं कभी-कभार पांव पोंछने आदि में उपयोगी होता है। ___पादपोंछन और रजोहरण भिन्न-भिन्न उपकरण हैं • रजोहरण से केवल प्रमार्जन होता है, जबकि पादपोंछन पूर्वोक्त तीन कार्यों में उपयोगी होता है। यद्यपि व्याख्याकारों ने कहीं-कहीं रजोहरण और पादपोंछन को एक ही उपकरण मान लिया है, किन्तु स्थानांग में उल्लिखित पाँच प्रकार के रजोहरण में पादपोंछन और काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन को भिन्न उपकरण स्वीकार किया है।
. रजोहरण का काष्ठदण्ड वस्त्र वेष्टित होता है और पादपोंछन युक्त काष्ठदण्ड वस्त्ररहित होता है।
• श्रमण अनिवार्य आपवादिक स्थिति में काष्टदण्डयुक्त पादपोंछन डेढ़ मास तक रख सकता है और श्रमणी विशेष सामाचारी के अनुसार आपवादिक स्थिति में भी काष्ठदंडयुक्त पादपोंछन नहीं रख सकती है किन्तु काष्ठदण्डयुक्त रजोहरण दोनों को रखना अनिवार्य है।