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उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...139 दीवार का या बिंटिया बनाकर रखी गई उपधि का सहारा ले सकते हैं।46
पूर्वोक्त समस्त प्रकार की उपधि उत्कृष्ट औपग्रहिक मानी गई है। जो सामान्य रूप से भिक्षाटन आदि कार्यों के लिए प्राय: उपयोग में आते हैं, वे पात्र आदि ओघ उपधि हैं तथा जो कारण विशेष से उपयोग में ली जाती हैं, वे पट्टे आदि औपग्रहिक उपधि हैं।47
- ओघनियुक्ति में सामान्य साधु, गुरु महाराज एवं वैयावृत्य करने वाले श्रमण के लिए औपग्रहिक उपधि का उल्लेख किया गया है। सामान्य साधु के लिए दण्ड, यष्टि, वियष्टि इन तीन को औपग्रहिक उपकरण माना गया है। गुरु के लिए उपयोगी होने से चर्मकृति, चर्मकोश चर्मपट्टिका, चर्मच्छेदन (कैंची आदि), योगपट्ट और चिलिमिलि (पर्दा) इन छह को औपग्रहिक उपकरण कहा गया है। वैयावृत्य करने वाले साधु के लिए बहत्तर परिमाण वाला नन्दी भाजन (पात्र विशेष) रखने का विधान है। इसका उपयोग शत्रु द्वारा नगर पर आक्रमण किये जाने पर, दुर्भिक्ष, अटवीगमन आदि विशेष प्रसंगों में ही किया जाता है। शेष साधुओं के लिए प्रमाणयुक्त पात्र का ही प्रावधान है।48
5. निशेथिया- निशीथ शब्द से निशेथिया की रचना हुई है। निशीथ का शाब्दिक अर्थ है रात्रि। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार मुनि आचार के सम्बन्ध में इसके दो अर्थ होते हैं- 1. रात्रि की शय्या पर बिछाने योग्य वस्त्र और 2. रात्रि में सोते समय पहनने योग्य वस्त्र। जैन ग्रन्थों में रजोहरण लपेटने के वस्त्र के रूप में भी निशेथिया शब्द का प्रयोग हुआ है। इसका रूपान्तरित शब्द निषद्या है।
निषद्या का अर्थ है बैठने योग्य या शयन योग्य वस्त्र। रजोहरण लपेटने के वस्त्र को निशेथिया या निषद्या कहने के पीछे यह कारण मालूम होता है कि पूर्वकाल में जो ऊनी वस्त्र रात्रि में शयन के लिए बिछाया जाता था। उसके पुराने होने पर आगे के कुछ तन्तु निकाल कर दसिया बना लेते थे। नीचे के भाग का रजोहरण के रूप में और ऊपर के भाग का लपेटने या पकड़ने के रूप में उपयोग करते थे। इस प्रकार बिछाने योग्य वस्त्र खण्ड होने से इसका नाम निषद्या या निशेथिया है। आज इसे ओघारिया कहते हैं।
___ ओघनियुक्ति (725) के अनुसार रजोहरण की दण्डी को लपेटने का भीतरी वस्त्र एक हाथ लम्बा होना चाहिए तथा रजोहरण की दण्डी के ऊपरी भाग में