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138...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन शस्त्र रखने का साधन। ___7. पट्टद्विक- संथारा और उत्तरपट्ट। ये दोनों ढाई हाथ लम्बे और एक हाथ चार अंगुल चौड़े होने चाहिए। संस्तारक ऊनी और उत्तरपट्ट सूती होना चाहिए।
उक्त समस्त प्रकार की उपधि मध्यम औपग्रहिक कहलाती है। तदुपरान्त साध्वियों की मध्यम उपधि में वारक यानी पानी रखने के साधन का भी निर्देश है। यदि उपाश्रय गांव से दूर हो तो वारक रखने की अनुज्ञा है। __औपग्रहिक उत्कृष्ट उपधि- उत्कृष्ट प्रकार की औपग्रहिक उपधि में निम्न उपकरण आते हैं45
1. अक्ष- स्थापनाचार्य के लिए उपयोगी चंदन। 2. संथारा- काष्ठ पट्ट। 3. पुस्तक पंचक- पाँच प्रकार के आकार वाली पुस्तकें
(i) गंडिका- इस पुस्तक की चौड़ाई एवं मोटाई समान और लम्बाई अधिक होती है जैसे ताडपत्रीय प्रतियाँ। ___(ii) कच्छपी- इस पुस्तक के दोनों किनारे पतले और मध्य भाग मोटा होता है। ___(iii) मुष्टिका- यह चार अंगुल लम्बी एवं गोलाकार होती है जैसे गुटकाकार पुस्तक।
(iv) संपुटफलक- इस पुस्तक के दोनों ओर जिल्द बंधी हुई होती है।
(v) छेदपाटी- यह पुस्तक लम्बाई में अधिक या न्यून, चौड़ाई में ठीकठीक तथा मोटाई में अल्प होती है। __4. फलक- लिखने की पाटी जिस पर लिखकर पढ़ सकें अथवा याद कर सकें, जिसका बैठने के लिए सहारा लिया जाये अथवा पीठ पीछे लगाने का व्याख्यान का तख्ता।
नियमत: मुनि को सहारा लेकर बैठने का निषेध है, क्योंकि प्रतिलेखना एवं प्रमार्जना करने के उपरान्त भी खंभे आदि पर कुंथु, चींटी आदि जीवों का संचरण होता रहता है, इससे जीव हिंसा सम्भव है। इसलिए निरोगी साधु को खंभा, दीवार आदि का सहारा लेकर नहीं बैठना चाहिए। यदि रोग आदि का विशेष कारण हो तो दृढ़ एवं कोमल तख्ने का, पत्थर के खंभे का, चूने से पूती