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उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...137 इसका उपयोग शरीर के आराम एवं जीव रक्षा के लिए होता है।
4. दंडादि पंचक- पाँच प्रकार के दंड- (i) यष्टि- यह साढ़े तीन हाथ लम्बा देह परिमाण होता है। गोचरी करते समय गृहस्थ देखे नहीं, इसलिए यवनिका बांधने में उपयोगी होता है।
(ii) वियष्टि- यह यष्टि से चार अंगुल कम प्रमाण वाला होता है। इसका उपयोग उपाश्रय के दरवाजे को बन्द करके अटकाने में होता है।
(iii) दण्ड- यह कंधे से लेकर नीचे तक लंबा होता है। इसका उपयोग शीतोष्ण काल में गोचरी जाते समय द्विपद (कंगारू आदि), चतुष्पद (कुत्ता,गधा आदि) अथवा शिकारी पशुओं का निवारण करने के लिए, जंगल में व्याघ्रचोरादि के उपद्रव के समय सुरक्षा के लिए एवं वृद्ध व्यक्ति को चलते समय सहारा लेने के लिए किया जाता है। ___ (iv) विदण्ड- यह ऊँचाई में कांख परिमाण का होता है। इसका उपयोग वर्षाकाल में गोचरी जाते समय किया जाता है। यह लम्बाई में छोटा होने से वर्षाकाल में कम्बली के भीतर रखा जा सकता है जिससे अप्काय की विराधना नहीं होती है।
(v) नालिका- यह शरीर से चार अंगुल अधिक अथवा तीन हाथ सोलह अंगुल परिमाणवाली होती है। विहार करते समय नदी, बावड़ी आदि में उतरना पड़े तो इसके द्वारा पानी मापा जाता है।
5. मात्रक त्रिक- तीन प्रकार की कुंडी। इसमें से एक मूत्र विसर्जन के लिए, दूसरी मल विसर्जन के लिए और तीसरी श्लेष्म विसर्जन के लिए उपयोग में आती है।
6. चर्म त्रिक- चमड़े के बने हुए तीन प्रकार के साधन। - (i) तलिया- पांव बांधने का साधन। किसी कारणवश रात्रि में अथवा दिन के समय कभी उन्मार्ग पर चलना पड़े तब यह साधन पैर के तलवे पर बांधने में उपयोगी होता है। (ii) वर्ग्र-वाघरी, चमड़े की डोरी जो तलिया बांधने में काम
आती है। (iii) कृत्ति- यह दावानल आदि के समय भूमि पर बिछाकर खड़े रहने में काम आता है। प्रवचनसारोद्धार में खल्लग एवं कोष इन दो सहित पाँच प्रकार के चर्म का निर्देश है। (iv) खल्लग-वायु रोग से जिसके पांव फट गये हों उसके पाँव में पहनने के लिए उपयोगी चर्म और (v) कोष- थैली, नखरदानी आदि