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उपधि और उपकरण का स्वरूप एवं प्रयोजन...141
• प्रश्नव्याकरण टीका में मुनियों के उपकरण की संख्या चौदह बताई गई है जो रजोहरण और पादपोंछन को भिन्न-भिन्न मानने पर ही होती है।
• रजोहरण फलियों के समूह से निर्मित औधिक उपकरण है जबकि पादपोंछन वस्त्रखंड होता है और वह औपग्रहिक उपकरण है। काष्ठदंडयुक्त पादपोंछन डंडे से बंधा हुआ वस्त्रखंड होता है। इसके द्वारा उपाश्रय के ऊपरी भाग आदि की सफाई की जाती है जिससे मकड़ी आदि के जाले न लगे।
उपर्युक्त प्रमाणों से पादपोंछन, काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन और रजोहरण तीनों उपकरण पृथक-पृथक सिद्ध होते हैं।49
7. पात्र केसरिका- प्राचीन ग्रन्थों में इसका अर्थ 'सूती वस्त्र' किया गया है तथा उस काल में पात्र प्रमार्जन के लिए प्रत्येक पात्र में वस्त्र का एक-एक टुकड़ा रखा जाता था, उससे पात्र प्रमार्जन होता था50 जबकि वर्तमान काल में पात्र केसरिका के स्थान पर चरवली (पूंजणी) रखी जाती है।51 ___8. रजोहरण- रजोहरण की लम्बाई, चौड़ाई एवं मोटाई कितनी हो? इस सम्बन्ध में टीकाकारों का स्पष्ट मन्तव्य है कि रजोहरण की दंडी पर निशेथिया लपेटने के बाद वह पोलाश से रहित, मध्य भाग में स्थिर एवं दसियों का अंतिम भाग कोमल हो। दोनों निशेथिया उतने ही मोटे हों कि उन्हें लपेटने के पश्चात रजोहरण अंगूठा और तर्जनी के बीच आ सके। वह ऊपरी भाग में डोरी के तीन आंटे से बंधा हुआ और बत्तीस अंगुल लम्बा होना चाहिए।
ध्यातव्य है कि यदि दसियां छोटी हो तो दण्डी लम्बी और यदि दण्डी छोटी हो तो दसियां लम्बी-कुल दोनों को मिलाकर बत्तीस अंगुल लम्बा होना चाहिए। .. पूर्वकाल में पाठा और दसियां अलग नहीं होती थी, अपितु कंबली के टुकड़े में से ही उसके नीचे के भाग के तन्तु निकाल कर दसियां बना लेते थे
और ऊपर का भाग पाठा के रूप में रखा जाता था। इस तरह कंबली का अमुक भाग पाठा के रूप में और अमुक भाग दसियां के रूप में प्रयुक्त होता था।
ओघनियुक्ति (707) में यह भी निर्देश है कि दसियां एवं निशेथिया दोनों बिना गाँठ के होने चाहिए। आज भी खरतर गच्छ आदि कुछ परम्पराओं में बिना गाँठ की दसियां होती है।