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64...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन पायच्छित्तं, विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ, झाणं, विउस्सग्गो।
(क) वही, 25/7/217 (ख) उत्तराध्ययनसूत्र, 30/30
(ग) तत्त्वार्थवार्तिक, 9/20 76. स्थानांगसूत्र, 6/65-66 77. औपपातिकसूत्र, संपा. मधुकरमुनि 30 78. उत्तराध्ययनसूत्र, 30/8-30 79. प्रवचनसारोद्धार, गा. 270-271 80. तत्त्वार्थसूत्र, 9/20-21 81. नवतत्त्वप्रकरण, गा. 35-36 82. पिण्डविसोही समिई, भावण पडिमा य इंदिय निरोहो। पडिलेहण गुत्तिओ, अभिग्गहा चेव करणं तु॥
(क) ओघनियुक्ति, भाष्य गा. 3
(ख) प्रवचनसारोद्धार, 67/562 83. सम् = एकीभावेन, इति: = प्रवृत्तिः समिति: शोभनैकाग्रपरिणामचेष्टैत्यर्थ:प्रतिक्रमणसूत्र वृत्ति।
उद्धृत- जैन आचार: सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 878 84. सम्यक् सर्ववित्प्रवचनानुसारितया इति:-आत्मन: चेष्टा समितिः। .
उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य वृत्ति, पृ-513 85. अट्ठपवयणमायाओ, समिई गुत्ती तहेव य। पंचेव य समिईओ, तओ गुत्तीओ आहिया।।
उत्तराध्ययनसूत्र, 24/1 86. वही, 24/2,3 87. ईरणमीर्या, गतिपरिणामो। उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य वृत्ति, पत्र 514 88. दशवैकालिकसूत्र, 5/3 89. भाषासमिति महितमितासन्दिग्धार्थ भाषणम्।
आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति, भा. 2, पृ. 84 90. एषणासमितिर्नाम, गोचर गतेन मुनिना। सम्यगुपयुक्तेन नवकोटि परिशुद्धं ग्राह्यम् ॥
वही, पृ. 84