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________________ श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...63 51. उत्तम:क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्य ब्रह्मचर्याणिः धर्मः। तत्त्वार्थसूत्र 9/6 52. प्रवचनसारोद्धार, 66/553 53. षट्प्राभृत-द्वादशानुप्रेक्षा, श्लो. 71-81 54. आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 117 55. प्रवचनसारोद्धार, गा. 555 56. वही, गा. 554 57. समवायांगसूत्र, मधुकर मुनि, 17/117 58. आवश्यकवृत्ति, चतुर्थ अध्ययन 59. प्रवचनसारोद्धार, गा. 555-56 60. श्रमणसूत्र, संपा. अमरमुनि, पृ. 273 61. भगवतीसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 25/7/235 62. तत्त्वार्थसूत्र, 9/24 63. प्रवचनसारोद्धार, 66/556 64. प्रवचनसारोद्धार, 66/557 65. स्थानांगसूत्र, मधुकरमुनि 9/3 66. समवायांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि 9/51 67. उत्तराध्ययनसूत्र, 31/10 68. प्रवचनसारोद्धार, 66/557 69. श्रमणसूत्र, संपा. अमरमुनि पृ. 273 70. समवायांगसूत्र, 9/51 71. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन 16वाँ 72. (क) भगवतीसूत्र, मधुकरमुनि, 25/7/116-117 (ख) उत्तराध्ययनसूत्र, 30/7,8 (ग) तत्त्वार्थवार्तिक (राजवार्तिक), 9/19 73. (क) उत्तराध्ययनसूत्र, 30/9 (ख) भगवतीसूत्र, मधुकरमुनि, 25/7/200 74. वही, 25/7/211 75. अभितरए तवे छव्विहे पण्णत्ते, तं जहा
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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