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62...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन
33. समवायांगसूत्र, मधुकरमुनि 27/178 34. प्रवचनसारोद्धार, 1354-1355 35. मूलाचार, 1/2-3 36. अनगारधर्मामृत, 9/84-85 37. वय समण धम्म संजम, वेयावच्चं च बंभगुत्तिओ। नाणाइतियं तव, कोहनिग्गहारं चरणमेय।।
(क) ओघनियुक्ति भाष्य गा. 2
(ख) प्रवचनसारोद्धार, गा. 551 38. (क) तत्त्वार्थसूत्र, 9/6
(ख) नवतत्त्व प्रकरण, गा. 23 39. स्थानांगसूत्र, मधुकरमुनि, 10/16 40. समवायांगसूत्र, मधुकरमुनि 10/61 41. स्थानांगवृत्ति, टीका. अभयदेवसूरि, पत्र 297 42. आवश्यक हारिभद्रीया वृत्ति, उद्धृत-जैन आचार सिद्धान्त और स्वरूप,
पृ. 621 43. आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 117 44. तत्त्वार्थसूत्र, 9/6 45. प्रवचनसारोद्धार, गा. 66/553 46. नवतत्त्वप्रकरण, गा. 23 47. स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 10/16 48. खंत्ती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे, सच्चे, संजमे, तवे, चियाए, बंभचेरवासे।
समवायांगसूत्र, १०/६१ 49. खंती मुत्ती अज्जव, मद्दवे तह लाघवे तवे चेव।
संजम चियागऽकिंचण, बोद्धव्वे बंभचेरे य॥ . यह गाथा आचार्य हरिभद्र ने 'अन्यत्वेवं वदन्ति' कहकर मतान्तर के रूप में
उल्लेखित की है। 50. खंती य मद्दवज्जव, मुत्ती तव संजमे य बोद्धव्वे । सच्चं सोयं आकिंचणं च, बंभं च जइधम्मो ॥
स्थानांगवृत्ति, पत्र, 297