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श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...51
पाद
अंगुल
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पौरुषीकाल का संक्षिप्त यन्त्र यह है-175
मास आषाढ़ पूर्णिमा श्रावण पूर्णिमा भाद्रपद पूर्णिमा आश्विन पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा मिगसर पूर्णिमा पौष पूर्णिमा माघ पूर्णिमा फाल्गुन पूर्णिमा चैत्र पूर्णिमा वैशाख पूर्णिमा ज्येष्ठ पूर्णिमा
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उपर्युक्त यन्त्र का तात्पर्य है कि अमुक-अमुक मास में उतने-उतने पाद या अंगुल प्रमाण छाया आने पर दिन की प्रथम पौरुषी का काल आता है। ___उग्घाड़ा पौरुषी विधि क्यों? जैन आचार में उग्घाड़ा पौरुषी की विधि करने के पीछे दो प्रयोजन माने गये हैं। पहला प्रयोजन सूत्र-अर्थ की पौरुषी से सम्बन्धित है और दूसरा पात्र प्रतिलेखना से सम्बद्ध है। इस समय सूत्र पौरुषी (स्वाध्याय) का काल पूर्ण होता है और अर्थ पौरुषी (ध्यान) का काल प्रारम्भ होता है, जिसके सूचनार्थ यह विधि की जाती है। जैन आगमों में मुनि के लिए पात्र प्रतिलेखन का समय दिन के प्रथम प्रहर का चतुर्थ भाग शेष रहने पर बतलाया गया है। उसकी स्मृति के रूप में भी यह विधि की जाती है।
श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में यह विधि आज भी प्रचलित है। पात्र प्रतिलेखना के उद्देश्य से यह विधि दिन का प्रथम प्रहर (सूर्योदय से लगभग ढाई से तीन घण्टा) व्यतीत होने पर करते हैं।
उग्घाड़ा पौरुषी विधि- दिन का पादोन प्रहर (प्रथम प्रहर का तीन भाग जितना समय) पूर्ण होने पर एक शिष्य गुरु के समक्ष आकर 'उग्घाड़ा पोरसी'