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________________ 50...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन प्रतिदिन 122 मुहूर्त पौरुषी बढ़ती एवं घटती है तथा एक अयन में 183 अहोरात्र होते हैं। इसलिए एक अयन में 183x1=3=11 मुहूर्त कालमान बढ़ता है। इस प्रकार तीन मुहूर्त की जघन्य पौरुषी में 1, मुहूर्त मिलाने पर पौरुषी का उत्कृष्ट कालमान 4, मुहूर्त होता है।174 प्रत्येक माह का पौरुषी काल- प्रत्येक महीने का पौरुषी काल इस प्रकार ज्ञातव्य है एक पाद = 12 अंगुल दो पाद = 24 अंगुल तीन पाद = 36 अंगुल चार पाद = 48 अंगुल उत्तराध्ययनसूत्र के अनुसार आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद-इन तीन मास में दो पाद प्रमाण, आश्विन, कार्तिक, मृगशीर्ष-इन तीन मास में तीन पाद प्रमाण, पौष मास में चार पाद प्रमाण, पुन: माघ, फाल्गुन, चैत्र-इन तीन मास में तीन पाद प्रमाण तथा वैशाख-ज्येष्ठ-इन दो मास में दो पाद प्रमाण जितनी छाया आने पर उग्घाड़ा पौरुषी का काल आता है। इस तरह श्रावण मास से पौष तक वृद्धि और माघ से आषाढ़ तक हानि होती है। ___सामान्यतया सात दिन-रात में एक अंगुल, पक्ष में दो अंगुल और एक मास में चार अंगुल की वृद्धि-हानि होती है। जैसे जब आषाढ़ पूर्णिमा के दिन अपने घुटने तक की छाया दो पाद प्रमाण हो, तब एक प्रहर होता है अर्थात घटने की बढ़ती-घटती छाया के आधार पर पौरुषी (प्रहर) का काल निश्चित किया जाता है तथा वह छाया दक्षिणायन में बढ़ती है और उत्तरायण में घटती है।
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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