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________________ श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...49 अंग माने गये हैं उसी तरह बौद्ध संघीय भिक्षु-भिक्षुणियों के लिए भी प्रवारण करना, उपोषथ करना, उपदेश सुनना आदि उनके संन्यास जीवन के आवश्यक अंग हैं। उग्घाड़ा पौरुषी की विधि पौरुषी का अर्थ- उग्घाड़ा पौरुषी का पारम्परिक अर्थ है-दिन के एक प्रहर जितना समय पूर्ण हो जाना अथवा दिन के प्रथम प्रहर के चतुर्थ भाग का प्रकट होना। ___ पुरुष शब्द से पौरुषी बना है। पुरुष शब्द के दो अर्थ हैं-1. पुरुष शरीर और 2. शंकु। पुरुष शरीर या शंकु से जिस काल का माप होता हो, वह पौरुषी है।172 सूर्योदय होने के पश्चात पुरुष के शरीर प्रमाण जितनी छाया आ जाये उस काल को पौरुषी काल कहते हैं।173 पौरुषी का कालमान- पुरुष प्रमाण छाया का काल भी पौरुषी कहलाता है। तद्नुसार दिवस अथवा रात्रि का चौथा भाग पौरुषी कहलाता है। इसे प्रहर भी कहते हैं। पौरुषी का कालमान अनियत होता है। दिन-रात की वृद्धि-हानि के आधार पर इसके कालमान का निश्चय किया जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन दिवस सम्बन्धी पौरुषी का जघन्य मान तीन मुहूर्त (छह घटिका = 2 घण्टे 24 मिनिट) का होता है और रात्रि पौरुषी का उत्कृष्ट मान साढ़े चार मुहूर्त (नौ घटिका = 3 घण्टे 36 मिनिट) का होता है। इसके बाद से सूर्य दक्षिणायन होता है। कर्क संक्रान्ति के दिन दिवस सम्बन्धी पौरुषी का उत्कृष्ट मान साढ़े चार मुहूर्त का होता है और रात्रि पौरुषी का जघन्यमान तीन मुहूर्त (छह घटिका = 2 घण्टे 24 मिनिट) का होता है। इस संक्रान्ति के पश्चात सूर्य उत्तरायण होता है। पौरुषी की छाया दक्षिणायन में प्रतिदिन बढ़ती है और उत्तरायण में प्रतिदिन घटती है। सामान्यतया वर्ष में दो अयन होते हैं-दक्षिणायन और उत्तरायण। दक्षिणायन श्रावण मास से प्रारम्भ होता है और उत्तरायण माघ मास से। __ शंकु 24 अंगुल प्रमाण होता है और पैर से जानु तक का परिमाण भी 24 अंगुल है। जिस दिन किसी भी वस्तु की छाया उसके प्रमाणोपेत होती है वह उत्तरायण का अन्तिम दिन और दक्षिणायन का प्रथम दिन होता है। सामान्यतया
SR No.006242
Book TitleJain Muni Ki Aachar Samhita Ka Sarvangin Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & D000
File Size32 MB
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