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48...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन अंग-उपधि-वसति एवं स्थण्डिलभूमि की प्रतिलेखना करें। यहाँ स्थण्डिल योग्य चौबीस स्थानों की प्रतिलेखना करें। उसके बाद दैवसिक प्रतिक्रमण करें।
• प्रतिक्रमण क्रिया पूर्ण होने पर गुरु की शुश्रुषा करें, मौखिक स्वाध्याय करें अथवा पृच्छना, अनुप्रेक्षा आदि स्वाध्याय करें।
• परवर्ती परम्परा के निर्देशानुसार रात्रि का प्रथम प्रहर बीत जाने पर संथारा पौरुषी की विधि करें और उपयोगपूर्वक संस्तारक पर लेट जायें। जब तक निद्रा न आये स्वाध्याय में निमग्न रहें।171
• तृतीय प्रहर में मुनि निद्रा लें।
• रात्रि के चतुर्थ प्रहर में स्वाध्याय करें। रात्रिकृत दुश्चेष्टाओं या दुर्विचारों का कायोत्सर्गपूर्वक शुद्धिकरण करें तथा रात्रिक प्रतिक्रमण करें।
यहाँ अहोरात्र चर्या विधि संक्षेप में कही गई है।
तुलना- जैन श्रमण की समग्र आचार संहिता अहोरात्रिक चर्या विधि पर आधारित है। यदि हम मूल आगमों का अनुशीलन करते हैं तो मुनि के लिए करणीय-अकरणीय का उल्लेख कई जगह मिलता है परन्तु दैनिक जीवन का एक सुव्यवस्थित क्रम उत्तराध्ययनसूत्र के सिवाय और कहीं देखने में नहीं आया है। इसमें भी मुनि की दैनिकचर्या के प्रत्येक पहलू को उजागर न करते हुए उन्हें प्रहरों के क्रम से विभाजित किया गया है। इस प्रकार उद्भव की दृष्टि से यही कहा जायेगा कि मुनि की अहोरात्रचर्या विधि का वर्णन सर्वप्रथम उत्तरांध्ययनसूत्र में उपलब्ध है। तदनन्तर इसकी विस्तृत चर्चा पंचवस्तुक के दूसरे अध्याय 'प्रतिदिन क्रिया' में प्राप्त होती है। तत्पश्चात तिलकाचार्य सामाचारी, आचारदिनकर, साधुविधिप्रकाश आदि में यह वर्णन सामान्य रूप से मिलता है।
दिगम्बर परम्परा के भिक्षु एवं भिक्षुणियों की दिनचर्या का क्रमबद्ध वर्णन प्राप्त नहीं होता है यद्यपि उभयकालिक षडावश्यक कर्म, चैत्यवन्दन, स्वाध्याय, ध्यान आदि अनेक क्रियाएँ दोनों सम्प्रदायों में नियत समय पर ही की जाती हैं। अध्ययनकाल, अनध्ययनकाल, संलेखना आदि के नियम भी दोनों में प्राय: समान हैं। ___ बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणी के दैनिक कर्म अवश्य होते हैं किन्तु उनकी क्रमबद्ध दिनचर्या का विवेचन पढ़ने में नहीं आया है। जिस प्रकार जैन साधु-साध्वी के लिए प्रतिलेखना, आलोचना, वन्दना, प्रतिक्रमण आदि दिनचर्या के आवश्यक