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श्रमण का स्वरूप एवं उसके विविध पक्ष...47 लेकर ‘राईयो अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं' तक का पाठ बोलें। फिर धीमें स्वर से स्वाध्याय करें। फिर रात्रि की एक घड़ी (24 मिनिट) शेष रहने पर रात्रि प्रतिक्रमण करें। __ • उसके बाद सूर्योदय होने पर मुखवस्त्रिका-चोलपट्टक आदि उपधि की एवं वसति की प्रतिलेखना करें। . फिर प्रथम प्रहर समाप्त न होने तक गुरु के समक्ष स्वाध्याय मण्डली में बैठकर स्वाध्याय करें। स्वाध्याय में धर्म का उपदेश दें, शिष्यों को सूत्र का पाठ दें, स्वयं भी सूत्र पढ़ें, धार्मिक शास्त्र लिखनेलिखवाने का कार्य करें।168 ।
. प्रथम प्रहर बीतने पर पौरुषी विधि (उग्घाड़ा पौरुषी) करें। फिर उपाश्रय से निकलते समय 'आवस्सही' तथा जिनालय में प्रवेश करते समय 'निसीहि' शब्द का उच्चारण करते हए जिनालय में चार या आठ स्तुतिपूर्वक देववन्दन करें। फिर वसति (उपाश्रय) में लौटकर ईर्यापथिक (आवगमन में लगे दोषों का) प्रतिक्रमण करें, फिर ध्यानादि शुभ प्रवृत्ति करें।169
• तदनन्तर भिक्षाकाल समुपस्थित हो जाने पर तिलकाचार्य सामाचारी के अनुसार मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें, आचारदिनकर के मत से शक्रस्तव पूर्वक मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन कर प्रत्याख्यान पूर्ण करें। फिर ओघनियुक्ति एवं पंचवस्तुक में उल्लिखित विधि के अनुसार पात्रोपकरणों की प्रतिलेखना करें। फिर उपयोग विधि करके भिक्षा हेतु प्रस्थान करें। वर्तमान में लगभग प्रथम प्रहर के अन्तर्गत सज्झाय विधि एवं उपयोग विधि कर लेते हैं।
• पिण्डनियुक्ति एवं पिण्डविशुद्धि ग्रन्थों के अनुसार निर्दोष आहार प्राप्त होने पर भिक्षाटक मुनि ‘निसीहि-3 नमो खमासमणाणं गोयमाईणं महामुणीणं' शब्द बोलते हुए वसति में प्रवेश कर ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें, गुरु के समक्ष गोचरी में लगे हुए दोषों की आलोचना करें, गुरु को आहार दिखाएं, फिर गोचरचर्या प्रतिक्रमण करें। एक घड़ी भर स्वाध्याय करें।
• तत्पश्चात सर्व साधुओं को निमन्त्रित कर भोजन मण्डली बनाकर आहार ग्रहण करें, पात्र धोयें तथा चैत्यवन्दन करें।
• बड़ीनीति की शंका होने पर विधिपूर्वक स्थण्डिल भूमि पर जायें। शरीर क्रिया से निवृत्त होकर स्वाध्याय में प्रवृत्त हो जाएं।170
• चतुर्थ प्रहर पूर्ण होने में एक घड़ी शेष रहे तब तक स्वाध्याय करें। फिर