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40...जैन मुनि की आचार संहिता का सर्वाङ्गीण अध्ययन अत: आत्म शुद्धि के लिए इस तरह के अतिचारों को भी गुरु के समक्ष प्रकाशित कर आलोचना करनी चाहिए। पाँच इन्द्रिय निरोध ___ शरीर के वे अवयव जिनके द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है, उसे इन्द्रिय कहते हैं। इन्द्रियाँ दो प्रकार की होती हैं- 1. ज्ञानेन्द्रिय और 2. कर्मेन्द्रिय। ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच होती हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार मन भी ज्ञानेन्द्रिय है। इन पाँच इन्द्रियों के शुभाशुभ विषयों में राग-द्वेष नहीं करना इन्द्रिय संयम है।
जैन दर्शन में पाँच इन्द्रियों के तेईस विषय बताये गये हैं।
1. स्पर्शेन्द्रिय-(सम्पूर्ण शरीर) इसके आठ विषय हैं-1. कठोर 2. कोमल 3. हल्का 4. भारी 5. शीत 6. उष्ण 7. स्निग्ध 8. रुक्ष।
2. रसनेन्द्रिय (जीभ) के पाँच विषय हैं- 1. तीखा 2. कड़वा 3. कषैला 4. खट्टा 5. मीठा।
3. घ्राणेन्द्रिय-(नासिका) के दो विषय हैं- 1. सुगन्ध और 2. दुर्गन्ध।
4. चक्षुरिन्द्रिय (चक्षु) के पाँच विषय हैं- 1. काला 2. नीला 3. लाल 4. पीला 5. सफेद।
5. श्रोतेन्द्रिय (कान) के तीन विषय हैं- 1. जीव 2. अजीव और 3. मिश्र। इन्द्रियों के इन तेईस विषयों पर राग-द्वेष नहीं करना चाहिए। .
तुलना- संसारी प्राणी के लिए इन्द्रियाँ ज्ञान प्राप्ति का सशक्त माध्यम हैं। इनकी स्वतन्त्र चर्चा सर्वप्रथम स्थानांगसूत्र में हुई है।139 तदनन्तर इसका उल्लेख प्रज्ञापनासूत्र 40, प्रवचनसारोद्धार141 आदि ग्रन्थों में प्राप्त होता है। पच्चीस प्रतिलेखना ___ वस्त्र, पात्र आदि का सावधानीपूर्वक एवं विधिपूर्वक निरीक्षण करना प्रतिलेखना कहलाता है। शरीर, पात्र, वसति, स्थण्डिल भूमि आदि कुछ वस्तुएँ प्रतिलेखनीय और प्रमार्जनीय उभय रूप होती हैं तथा वस्त्र आदि कुछ वस्तुएँ केवल प्रतिलेखनीय ही होती हैं। ___ प्रतिलेखन विधि की स्वतन्त्र चर्चा अध्याय-6 में आगे करेंगे। तीन गुप्ति
गुप्ति का शाब्दिक अर्थ है-रक्षा। जैन आगम के अनुसार गुप्ति के निम्न