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जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के ... । अध्याय - 6 : केशलोच विधि की आगमिक अवधारणा
141-157
1. केश लोच का शाब्दिक अर्थ 2. केशलुंचन की आवश्यकता क्यों ? 3. विविध दृष्टियों से केशलोच की प्रासंगिकता : 4. केशलुंचन के प्रकार 5. केशलुंचन के अधिकारी कौन ? 6. केशलुंचन की काल मर्यादा 7. केशलुंचन से होने वाले लाभ 8. केशलुंचन न करने से लगने वाले दोष 9. केशलुंचन करने-करवाने वाले मुनि की आवश्यक योग्यताएँ 10. केशलुंचन के लिए शुभ दिन 11. मुनि कब, किन स्थितियों में लोच करवाएं? 12. केशलोच विधि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 13. लोचकरण - विधि • केशलोच से पूर्व करने योग्य विधि • केशलोच के पश्चात करने योग्य विधि 14. तुलनात्मक अध्ययन 15. उपसंहार ।
अध्याय-7 : उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण
158-267
1. उपस्थापना का अर्थ एवं उसके एकार्थवाची 2. उपस्थापना के प्रकार 3. संयम एवं चारित्र में भेद 4. उपस्थापना व्रतारोपण की आवश्यकता क्यों ? 5. उपस्थापना चारित्र की प्राप्ति का हेतु 6. उपस्थापना चारित्र में स्थिर रहने के उपाय 7. उपस्थापना चारित्र का महत्त्व 8. उपस्थापना प्रदान करने का अधिकारी कौन ? 9. उपस्थापना के योग्य कौन? 10. उपस्थापना के अयोग्य कौन ? 11. अयोग्य की उपस्थापना करने से लगने वाले दोष 12. उपस्थापना चारित्र क दिया जाए? 13. उपस्थापना व्रतारोपण के लिए मुहूर्त्त विचार 14. उपस्थापना के लिए प्रयुक्त सामग्री 15. उपस्थापना (छेदोपस्थापनीय) चारित्र का फल 16. वयादि की अपेक्षा - उपस्थापना का क्रम 17. उपस्थापित शिष्य का अध्ययन क्रम 18. पाँच महाव्रत एवं छठा रात्रिभोजनविरमणव्रत एक अनुशीलन
(i) अहिंसा महाव्रत का स्वरूप • अहिंसा महाव्रत की उपादेयता • अहिंसा महाव्रत के अपवाद • अहिंसा महाव्रत की भावनाएँ
(ii) सत्य महाव्रत का स्वरूप • सत्य महाव्रत का वैशिष्ट्य • भाषा के प्रकार • असत्य बोलने के कारण • सत्य महाव्रत की उपादेयता • सत्य महाव्रत