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________________ उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 261 90. वही, पृ. 219 91. अप्पमत्तो अयं गन्धो, यायं तगरचन्दनी। य च सीलवतं गन्धो, वाति देवेसु उत्तमो।। धम्मपदं, राहुल सांकृत्यायन, 4/13 92. सीलगन्धसमो गन्धो, कुतो नाम भविस्सति। यो समं अनुवाते च, पटिवाते च वायति।। सग्गारोहणसोपानं, अखं सीलसमं कुतो। द्वारं वा पन निब्बान- नगरस्स पवेसने। विशुद्धिमार्ग, भिक्षुधर्मरक्षित, भा. 1, परिच्छेद 1, पृ. 12 93. आचारांगनियुक्ति, गा. 30 की वृत्ति 94. उत्तराध्ययनसूत्र, 16/1-10 95. मूलाचार, 10/105-106 96. जैन, बौद्ध और गीता के आचार दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 339 97. प्रश्नव्याकरणसूत्र, 2/4/5 98. वही, 2/4/6 99. वही, 2/4/7 100. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप पर आधारित, पृ. 828 101. बृहत्कल्पसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 6/7-12 102. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 5/21 103. बृहत्कल्पसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 6/3 104. आचारांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/15/787 105. पंचवस्तुक, गा. 658 106. दशवैकालिकसूत्र, 4/15 107. 'मूर्छा परिग्रहः' तत्त्वार्थसूत्र, 7/27 108. न सो परिग्गहो वुत्तो नायपुत्तेण ताइणा। मुच्छा परिग्गहो वुत्तो, इदं वुत्तं महेसिणा।। दशवैकालिकसूत्र, 6/20 109. परि सामस्त्येन ग्रहणं परिग्रहणं ...... मूर्छावशेन परिगृह्यते आत्मभावेन ममेति बुद्धया गृह्यते इति परिग्रहः। प्रश्नव्याकरण टीका, 215
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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