________________
262... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता
110. (क) बृहत्कल्पसूत्र, 1/831
(ख) जैन सिद्धांत बोल संग्रह, भा.5, पृ. 33
111. प्रश्नव्याकरणसूत्र, पृ. 761
112. मूलाचार, 1/14
103. आचारांगसूत्र, 1/2/5/90 114. वही, 1/5/1/141
115. प्रश्नव्याकरणसूत्र, श्रुत. 2, अ. 10
116. उत्तराध्ययनसूत्र, 29/31,34
117. व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 8/16
118. निशीथभाष्य, संपा. अमरमुनि, भा. 1, गा. 395 की चूर्णि
119. समवायांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 25
120. पंचवस्तुक, गा. 660-661
121. आयारचूला, 15/44 48, 52-55, 58-62, 65-69, 72-76
122. समवायांगसूत्र, 25
123. प्रश्नव्याकरण, संवरद्वार
124. दशवैकालिकसूत्र, 4/16-17
125. उत्तराध्ययनसूत्र, 23/12
126. आचारांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/15, पृ0 415
127. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, संवरद्वार 128. दशवैकालिक जिनदासचूर्णि, पृ. 153
129. विशेषावश्यकभाष्य मलयगिरिटीका, गा. 1241-45
130. मूलाचार, 5/296
131. भगवती आराधना, गा. 1179
132. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 870
133. विशेषावश्यकभाष्य, मलयगिरिटीका, गा. 1239, 1243
134. वही, 1240, 1245
135. उत्तराध्ययनसूत्र, 19/31
136. दशवैकालिकसूत्र, 3/2
137. वही, 4/16