SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 322
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 260... जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता परिहरति विपत्तिर्यो न गृह्णात्यदत्तम्।। 70. अस्तेय प्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानं। सिन्दूर प्रकरण, गा. 33 योगदर्शनम्, साधनापाद, 2/37 71. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, 103 72. प्रश्नव्याकरण, अध्ययन 3 73. दशवैकालिकसूत्र, 6/14-15 74. (क) व्यवहारसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 8/11 75. (क) समवायांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 25/1 (ख) आचारांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/15/784 (ग) प्रवचनसारोद्धार, गा. 638 76. पंचवस्तुक, गा. 657 77. दशवैकालिकसूत्र, 4/14 78. रसाद् रक्तं ततो मांसं मांसात मेदस्ततोऽस्थि च । अस्थ्यो मज्जा ततः शुक्रं // अष्टांगहृदय, 3/6 79. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 824 80. ब्रह्मचर्येण वै विद्या, अथर्ववेद, 15/5-17 81. सूत्रकृतांगटीका, उद्धृत- जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 829 82. अथर्ववेद संहिता, 111/5/पृ. 266-67 83. देव-दाणव- गन्धव्वा, जक्ख- रक्खस- किन्नरा । बम्भयारिं नम॑सन्ति, दुक्करं जे करन्ति तं । उत्तराध्ययनसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 16/16 84. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 2/4/141, पृ. 213 85. ज्ञानार्णव, 11/5 86. वही, 11/10 87. वही, 11/28 88. वही, 11/29-31 89. प्रश्नव्याकरणसूत्र, 2/4/142
SR No.006241
Book TitleJain Muni Ke Vrataropan Ki Traikalik Upayogita Navyayug ke Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy