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उपस्थापना (पंचमहाव्रत आरोपण) विधि का रहस्यमयी अन्वेषण... 177
1. ईर्या समिति
चलते-फिरते, उठते-बैठते सतत जागरूक रहना।
मन में रागजन्य विचार उत्पन्न नहीं करना ।
2. मन समिति 3. वचन समिति
किसी के मन को दु:खाने वाले वचन नहीं बोलना। 4. एषणा समिति (आलोकित पान - भोजन ) जो आहार श्रमण के निमित्त न बना हो, ऐसे निर्दोष आहार की प्राप्ति का प्रयास करना तथा खुले हुए पात्र में आहार करना ।
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5. निक्षेपणा समिति - साधु जीवन के वस्त्र, पात्रादि उपकरणों को सावधानी पूर्वक रखना, उठाना एवं उनका उपयोग करना।
अहिंसा महाव्रत के अतिचार
महाव्रतों का अत्यन्त सतर्कता पूर्वक पालन करते हुए भी कुछ दोष लग जाते हैं, उन्हें अतिचार कहा गया है। अहिंसा महाव्रत में निम्न कारणों से अतिचार लगते हैं7– एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जीवों का बल पूर्वक स्पर्श करना, उन जीवों को स्वल्प या अधिक रूप से शारीरिक कष्ट देना, कष्ट पहुँचाना आदि प्रवृत्तियाँ अहिंसाव्रत को दूषित करती हैं।
2. सत्य महाव्रत का स्वरूप
असत्य का सम्पूर्ण त्याग करना सत्य महाव्रत है । सर्वविरतिचारित्र अंगीकार करने वाला साधक प्रतिज्ञा करता है38
'हे भगवन् ! मैं मृषावाद का पूर्ण रूपेण प्रत्याख्यान करता हूँ। क्रोध से, लोभ से, भय से या हंसी से, मैं स्वयं असत्य नहीं बोलूंगा, दूसरों से असत्य नहीं बुलवाऊंगा और असत्य बोलने वालों का अनुमोदन भी नहीं करूंगा। इस व्रत की प्रतिज्ञा तीन करण एवं तीन योग पूर्वक यावज्जीवन के लिए करता हूँ ।' शेष पूर्ववत ।
इसका दूसरा नाम मृषावादविरमण व्रत भी है। मृषावाद का अर्थ है असत्य बोलना, विरमण - विरत होना अर्थात समस्त प्रकार के असत्य भाषण का त्याग करना मृषावाद विरमणव्रत है।
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भारतीय चिन्तकों ने सत्य पर सूक्ष्मता से चिन्तन किया है। उनके अनुसार सत्य की कुछ परिभाषाएँ निम्नोक्त हैं - जो शब्द सज्जनता का पावन सन्देश प्रदान करता है, सौजन्य भावना को उत्पन्न करता है और यथार्थ व्यवहार प्रस्तुत करता है, वह सत्य है | 39 जिस शब्द के प्रयोग से अन्य का हित हो,
कल्याण