________________
178...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता हो, आध्यात्मिक अभ्युदय हो, वह सत्य है।40 जैन दर्शन के महान् चिन्तक आचार्य उमास्वाति ने परिभाषा दी है - जो पदार्थ उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त है, वह सत है।41 जैन दृष्टि से विश्व के सभी पदार्थ चेतन या जड़ तत्त्व रूप हैं। इन दोनों तत्त्वों में प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है तथापि इनका अस्तित्व सर्वकाल में बना रहता है। प्रत्येक वस्तु द्रव्य रूप से नित्य है और पर्याय रूप से उत्पत्ति एवं विनाश स्वभाव वाली है। इससे स्पष्ट होता है कि हर वस्तु परिवर्तनशील होने के बावजूद भी अस्तित्ववान् है। पदार्थ का मूलगुण हर समय अपने स्वरूप में स्थित रहता है। अत: सत वह है, जिसका कभी भी नाश नहीं होता और जो नष्ट होता है वह सत नहीं है। इस सत से सत्य शब्द निष्पन्न है अत: सत्य वह है जिसका अस्तित्व तीनों कालों में है, उसमें किसी प्रकार का सम्मिश्रण नहीं होता है। सत्य महाव्रत का वैशिष्ट्य
एक व्यक्ति ने परमात्मा महावीर से पूछा - इस विराट् विश्व में कौन-सी वस्तु सारपूर्ण है ? समाधान दिया - इस लोक में सत्य सारभूत है।42 सत्य रहित जो भी है, वह निस्सार है। सत्य समस्त भावों का प्रकाशक है।43
सत्य केवल वाणी तक ही सीमित नहीं रहता है, उसका जन्म सबसे पहले मन में होता है और बाद में वाणी के द्वारा व्यक्त होता है तथा आचरण के द्वारा मूर्त रूप लेता है। सत्यनिष्ठ व्यक्ति के मन, वचन और आचरण में एकरूपता रहती है। वह दुनियाँ का सर्वोत्तम मानव होता है। एक जगह लिखा है- जिसके मन, वचन और काया के व्यापार में एकरूपता है वह महात्मा है। इसके विपरीत आचरण करने वाला दुरात्मा है।44
सत्य व्यक्ति के उज्ज्वल चरित्र का प्रतीक होता है। हिन्दू मत से सृष्टि सत्य पर प्रतिष्ठित है। सत्य से ही आकाश, वायु, पृथ्वी आदि स्थिर हैं।45 एक आचार्य ने कहा है – पृथ्वी सत्य के कारण टिकी हुई है, सूर्य सत्य के कारण प्रकाश और ताप देता है, सत्य के प्रभाव से शीतल-मन्द-सुगन्ध पवन प्रवाहित है और तो क्या ? विश्व की सभी वस्तुएँ सत्य पर प्रतिष्ठित हैं।46 शिवपुराण में कहा है7- तराजू के एक पलड़े में हजारों अश्वमेघ यज्ञ के पुण्य को रखा जाये और दूसरे पलड़े में सत्य को रखा जाये तो हजारों अश्वमेघ यज्ञ के पुण्य से बढ़कर सत्य का पुण्य है। सन्त तुलसीदास ने सभी सुकृत्यों का मूल सत्य