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प्रव्रज्या विधि की शास्त्रीय विचारणा... 81
गति में जायेगा? यह जानकारी प्राप्त की जाती है। यदि पुष्प समवसरण के भीतर पड़ते हैं तो दीक्षाराधना से सुगति होगी और यदि समवसरण से बाहर गिरते हैं तो उसकी दुर्गति होगी, ऐसा माना जाता है।48 ___कुछ आचार्यों के अनुसार उस समय दीक्षार्थी या किसी अन्य के द्वारा उच्चारित शुभाशुभसूचक सिद्धि, वृद्धि शब्दों के आधार पर या क्रिया करते हुए दीक्षार्थी द्वारा 'इच्छाकारेण तुब्भे अम्हं सम्मत्तसामाइयं आरोवेह' आदि शब्दों के उच्चारण के आधार पर दीक्षार्थी की सद्गति/दुर्गति का ज्ञान किया जा सकता है। कुछ आचार्यों का कहना है कि आचार्य के मन आदि योगों की प्रवृत्ति के आधार पर शुभाशुभ गति जानी जाती है। यदि आचार्य का मन क्रोध, लोभ, मोह से व्याकुल न हो और क्रिया इत्यादि में उच्चारित वाणी स्खलन आदि दोषों से रहित हो तो दीक्षार्थी की शुभ गति होती है अन्यथा होने पर अशुभ गति होती है।
कुछ लोगों का मानना है कि दीप, चन्द्र एवं तारों के तेज अधिक हों तो दीक्षार्थी की शुभ गति होती है अन्यथा अशुभ गति। कुछ लोगों का मन्तव्य है कि दीक्षा होने के बाद दीक्षार्थी के शुभ योगों से शुभ तथा अशुभ योगों से अशुभ गति होती है।49
इस प्रकार दीक्षार्थी की शुभाशुभ गति जानने के अनेक उपाय प्रतिपादित हैं। हमें शुभाशुभ गति जानने का अन्तिम उपाय सर्वथोचित प्रतीत होता है। दीक्षार्थी की योग्यता-अयोग्यता के निर्णय की विधि
__पंचाशकप्रकरण में यह निर्देश भी प्राप्त होता है कि शुभाशुभ गति का निर्णय करते हुए यदि पुष्पपात समवसरण के बाहरी भाग में हो तो शंका आदि अतिचारों की आलोचना और अहंदादि चार शरणों (अरिहन्त, सिद्ध, मुनि, धर्म) को स्वीकार करने की विधि करवानी चाहिए।
तदनन्तर चक्षुयुगल पर श्वेत वस्त्र बंधे हुए की मुद्रा में पूर्ववत पुष्पपात की विधि करवानी चाहिए। उसमें पुष्प यदि समवसरण में पड़े तो दीक्षार्थी को दीक्षा योग्य समझना चाहिए। यदि समवसरण के बाहर पड़े तो पुनः शंका आदि अतिचारों की आलोचना विधि करवानी चाहिए। फिर तीसरी बार पूर्ववत ही पुष्पपात करवाना चाहिए। यदि इस बार पुष्प समवसरण में पड़े तो दीक्षा देनी चाहिए और बाहर गिरे तो दीक्षार्थी को अयोग्य जानकर दीक्षा नहीं देनी चाहिए।50