________________
82...जैन मुनि के व्रतारोपण की त्रैकालिक उपयोगिता नव्य युग के.....
यह परीक्षा-विधान श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा में आज भी विद्यमान है। अन्तर मात्र इतना है कि पुष्पों का स्थान अक्षतों ने ले लिया है। विधिमार्गप्रपा (14वीं शती) में इस परीक्षा-विधि का स्पष्ट उल्लेख है। वहाँ परीक्षा में अयोग्य सिद्ध होने पर दीक्षाग्राही को श्रावकव्रत की दीक्षा देने का वर्णन है। यदि वह मिथ्यादृष्टि हो तो उसे सम्यक्त्वव्रत स्वीकार करवाने का निर्देश है। इसमें यह भी सूचित किया गया है यदि दीक्षाग्राही परम्परागत रूप से श्रावक कुल में उत्पन्न हुआ हो, तो उसकी परीक्षा करने का कोई नियम नहीं है, ऐसा पूर्वाचार्यों का कथन है।51 यद्यपि वर्तमान की श्वेताम्बर-परम्परा में दीक्षोत्सक सभी व्यक्तियों का परीक्षा-विधान किया ही जाता है। कई बार अक्षतपात के द्वारा दीक्षार्थी की अयोग्यता का ज्ञान हो जाने पर भी मुनि धर्म की दीक्षा दी जाती है जो सामाचारी और शास्त्र विरुद्ध है।
उपर्युक्त परीक्षा-विधि का सर्वप्रथम उल्लेख आचार्य हरिभद्रसूरि के पंचाशकप्रकरण में उपलब्ध होता है। उसके बाद यह चर्चा विधिमार्गप्रपा में प्राप्त होती है। श्वेताम्बर-परम्परा में अद्यावधि पर्यन्त इस विधि का स्वरूप पूर्ववत ही विद्यमान है। मूलतः इस विधि की सत्यता ज्ञानीगम्य है। दीक्षित को संयम पर्याय के अनुसार सुखानुभूति ___ दीक्षा सिंह की तरह शूरवीरता के साथ आचरण करने जैसा कठिन व्रत है। जो व्यक्ति शुद्ध परिणति के साथ संयम का उत्कृष्ट पालन करता है वह अनन्त सुख का भागी होता है। जैन शास्त्रों में दैविक सुख को मुनि सुख के सामने नगण्य माना है। भगवतीसूत्र में प्रभु गौतम स्वामी द्वारा प्रश्न किये जाने पर परमात्मा महावीर ने संयमपर्याय के आधार पर मुनि जीवन के सुखों का वर्णन करते हुए कहा है कि एक मास की दीक्षा पर्याय वाला साधु वाणव्यन्तर देवों से भी अधिक सुखी है। इसी प्रकार दो मास की दीक्षा पर्याय वाला भवनपति देवों,तीन मास की दीक्षित पर्यायवाला असूरकुमार देवों, चार मास की संयम पर्यायवाला ग्रह-नक्षत्र-तारा आदि ज्योतिषी देवों, पाँच मास की पर्यायवाला सूर्य-चन्द्र देवों, छह मास की पर्यायवाला पहले दूसरे (सौधर्म-ईशान) देवलोक के देवों, सात मास की पर्यायवाला तीसरे-चौथे (सनत्कुमार- माहेन्द्र) देवलोक के देवों, आठ मास की पर्यायवाला पाँचवें-छठे (ब्रह्मलोक- लोकान्तिक) देवलोक के देवों, नौ मास की पर्यायवाला सातवें-आठवें (महाशुक्र- सहस्रार)