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________________ जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ... 31 निर्देश किया है, पर उनमें षट्कर्त्तव्यों की पृथक् चर्चा नहीं है। आचार्य हेमचन्द्र ने श्रावक की दैनिक - चर्या पर प्रकाश डालते हुए 'प्रतिक्रमण आदि षट्आवश्यक-क्रिया' करने का सूचन तो किया है, परन्तु यहाँ षडावश्यक से तात्पर्य सामायिक आदि छः आवश्यक - क्रियाओं से है। यदि गहराई से अध्ययन करें, तो आचार्य हरिभद्र आदि द्वारा प्रतिपादित श्रावकधर्मविधिप्रकरण, श्रावकप्रज्ञप्ति आदि के अन्तर्गत व्युत्क्रम या बिखरे हुए अंशों में षट्कर्म के नाम तो मिल जाते हैं, किन्तु परवर्ती संकलित ग्रन्थों में इसकी अवधारणा अधिक स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। श्वेताम्बर मान्य षट्कर्म के नाम ये हैं-जिनेन्द्रपूजा, गुरू उपासना, सत्वानुकम्पा, सुपात्रदान, गुणानुराग और श्रुतिराग। जैन परम्परा के अतिरिक्त हिन्दू-धर्म में भी गृहस्थों के लिए आवश्यक षट्कर्मों का विधान है। पाराशरस्मृति के अनुसार षट्कर्मों के नाम निम्न हैं- 1. संध्या 2. जप 3. होम 4. देवपूजा 5. अतिथिसत्कार और 6. वैश्वदेव | 59 इस प्रकार श्रावक के दैनिक - षट्कर्म की अवधारणा जैन एवं हिन्दू दोनों परम्पराओं में नामान्तर के साथ सुस्पष्टतः उपलब्ध होती हैं। श्रावक के तीन मनोरथ जो साधक अशुभकर्मों का क्षय और संसार का अन्त करने के लिए प्रयत्नशील हो चुका है और अन्तर्चेतना से जागृत है, उस श्रावक को प्रतिदिन तीन प्रकार के मनोरथों का अवश्य चिन्तन करना चाहिए। इन मनोरथों का स्मरण करने वाला श्रावक महानिर्जरा करने का अधिकारी बनता है। वे तीन मनोरथ (शुभ भावनाएँ) निम्न हैं०० 1. मैं कब अल्प या बहुत परिग्रह का त्याग करूँगा। 2. मैं कब मुंडित होकर गृहस्थधर्म से मुनिधर्म का पालन करूँगा। 3. मैं कब समाधिमरण की आराधना कर सागारी या निरागारी अनशनपूर्वक विचरण करूँगा। पूर्वोक्त मनोरथों का चिन्तन करने से व्यक्ति के परिणाम ऋजु बनते हैं और वह उत्तरोत्तर आत्मलक्षी की दिशा में अग्रसर बनता है। निष्पत्ति- यदि तीन मनोरथों के सम्बन्ध में समीक्षात्मक दृष्टि से अध्ययन किया जाए, तो यह वर्णन आगमसाहित्य में एकमात्र स्थानांगसूत्र में उपलब्ध होता है। आगमेतर ग्रन्थों में यह चर्चा कई जगह उपलब्ध हैं, जो निर्विवादतः
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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