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30... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
संयम का पालन करने से इच्छाएँ तथा लालसाएँ मन्द होती है, विषयकषायों पर नियन्त्रण होता है, अहिंसा धर्म का पालन होता है और मन स्थिर बनता है। अस्तु, साधना के चरमोत्कर्ष तक पहुँचने के लिए संयम का पालन अपरिहार्य है।
5. तप- इच्छाओं का निरोध करना तप है। तप बारह प्रकार का कहा गया है। तप करने से व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षाएँ कम होती है, शरीर स्वस्थ रहता है, आत्मा निर्मल बनती है, अंहकार और ममकार की भावनाएँ विलीन हो जाती हैं तथा कई प्रकार की लब्धियाँ और शक्तियाँ जागृत होती हैं।
6. दान- न्यायोपार्जित धन का सदुपयोग करना दान है। जैनाचार्यों ने कहा है-सम्पत्ति की सार्थकता दान में है, किन्तु सुपात्र को दिया गया दान ही अधिक फलवान होता है। दान करने से अहंकार या प्रसिद्धि की भावना जग जाए, तो वह दान निष्फल हो जाता है अत: दान वृत्ति कामना, प्रसिद्धि और फलरहित भावना से युक्त होना चाहिए।
निष्पत्ति- यदि दिगम्बर मान्य गृहस्थ के दैनिक षट्कर्म का ऐतिहासिक द्रष्टि से पर्यावलोकन करें तो ज्ञात होता है कि आचार्य कुन्दकुन्द, जटासिंहनन्दि एवं जिनसेन (12 वीं शती) तक श्रावक के दैनिक कर्त्तव्य के रूप में दान, पूजा, तप और शील- ये चार कर्म थे। इससे परवर्तीकाल में पूजा, वार्ता, दान, स्वाध्याय, संयम और तप-इन छ: कर्मों को कर्त्तव्य के रूप में स्वीकारा जाने लगा। जिनसेनाचार्य ने इन छह कर्म को श्रावक के कुलधर्म के रूप में स्थापित किया है।58 आचार्य सोमदेव और आचार्य पद्मनन्दि ने भी इन्हें षट्कर्मों के नाम से स्वीकार किया है। उपर्युक्त षट्कर्म कालक्रम के प्रभाव से 14वीं-15वीं शती के बाद अस्तित्व में आए हैं। आज भी गृहस्थ के दैनिक कर्त्तव्य के रूप में इन्हें ही स्वीकारा जाता है।
यह उल्लेख्य है कि श्वेताम्बर ग्रन्थों में भी श्रावक के षट्कर्म बतलाए गए हैं, परन्तु श्वेताम्बर परम्परा में मान्य षट्कर्म एवं दिगम्बर परम्परा के आधार पर बतलाए गए षट्कर्म में भेद परिलक्षित होता है। यद्यपि दोनों ही परम्पराएँ इसकी आवश्यकता को महत्त्व देती हैं, फिर भी उनमें आंशिक भिन्नताएँ हैं। श्वेताम्बर परम्परा के आचार्य हरिभद्र, आचार्य हेमचन्द्र के ग्रन्थों एवं इससे परवर्ती 16वीं17वीं शती के ग्रन्थों में षट्कर्म की स्पष्ट चर्चा देखने को नहीं मिलती है। यद्यपि आचार्य हरिभद्रसूरि आदि ने श्रावक जीवन से सम्बन्धित विभिन्न कर्त्तव्यों का