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________________ जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ... 25 सहधर्मी का समागम न हो, उसका सहवास न हो, उसके प्रति आदर-सत्कार न हो, तो व्यक्ति का आत्मधर्म किसके सहारे खड़ा रहेगा ? साधर्मी - भक्ति धर्म को स्थिर करने का आधार माना गया है। 52 साधर्मीवात्सल्य एक महान् आराधना है। इसकी महत्ता के सम्बन्ध में एक प्राचीन गाथा दृष्टव्य है एकत्थ सव्वधम्मा, साहम्मिअवच्छलं तु एत्थ बुद्धि । तुलाए - तुलिया दोवि अ, तुल्लाई मणिआई ।। बुद्धि के तराजू में एक ओर सभी धर्म रखे जाएं तथा दूसरी ओर साधर्मिक गृहस्थ को रखा जाए, तो दोनों समान रहते हैं । सम्राट भरत, महाराजा कुमारपाल, महामात्य वस्तुपाल, तेजपाल, श्रेष्ठी जिनदास आदि की जीवन गाथाएँ साधर्मीभक्ति के जीवन्त उदाहरण हैं अतः प्रत्येक श्रावक को प्रतिवर्ष एक बार साधर्मी - भक्ति अवश्य करना चाहिए । 3. यात्रा त्रिक- प्रत्येक वर्ष जघन्य से एक यात्रा अवश्य करना चाहिए। यात्रा तीन प्रकार की बतलाई गई हैं- 53 1. अट्ठाई उत्सवयात्रा 2. रथयात्रा और 3. तीर्थयात्रा। (1) अट्ठाईयात्रा - एक पर्यूषण, दो ओली, तीन चातुर्मास ऐसे एक वर्ष में कुल छः अट्ठाई पर्व आते हैं। पर्यूषण के आठ दिन, ओली के नौ दिन एवं चातुर्मासिक चतुर्दशी के पहले के आठ-आठ दिन इस प्रकार इन पर्व दिनों में सभी चैत्यों की पूजा आदि महान् उत्सव करना अट्ठाईपर्व यात्रा है। (2) रथयात्रा- योग्य प्रकार से सज्जित रथ में जिनेश्वर प्रभु की प्रतिमा स्थापित कर उसे नगर में घुमाना रथयात्रा है अथवा अष्टाह्निकपर्व के दिनों में स्वर्णादि के रथ में गजाश्व जोतकर और उसमें जिनेश्वर परमात्मा की प्रतिमा विराजमान कर शोभायात्रा निकालना रथयात्रा है। वर्तमान में इस यात्रा को वरघोड़ा या भगवान की सवारी निकालना भी कहते हैं । (3) तीर्थयात्रा - शत्रुंजय, गिरनार, सम्मेतशिखर आदि तीर्थों की यात्रा करना तीर्थयात्रा है। पैदल तीर्थयात्रा में छः नियमों का पालन अनिवार्य माना गया है -1. पादविहार 2. एकासन 3. सचित्त वस्तु का त्याग 4. ब्रह्मचर्य पालन 5. संथारा पर शयन और 6. सम्यक्त्व की शुद्धि रखना। इन नियमों के अतिरिक्त प्रभुपूजा, प्रतिक्रमण, प्रवचनश्रवण आदि अन्य नियम भी पालने योग्य होते हैं। 4. स्नात्रमहोत्सव - प्रतिवर्ष एक बार स्नात्र महोत्सव करना - यह श्रावक
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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