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22... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
व्यापार करना 13. संध्या काल में आरती और मंगल दीपक करना 14. दैवसिक प्रतिक्रमण करना 15. गुरूसेवा करना 16. स्वाध्याय करना 17. कुटुम्बीजनों के साथ धर्म चर्चा करना 18 माता-पिता आदि पूज्यजनों की सेवा करना 19. गृहस्थी त्याग हेतु तीन मनोरथों का चिंतन करना ।
संध्याकालीन कर्त्तव्य
श्राद्धविधिप्रकरण में वर्णित गृहस्थ के संध्याकालीन कर्त्तव्य निम्न प्रकार हैं 46 - 1. रात्रिभोजन का त्याग करना 2. यथाशक्ति जल सेवन आदि का भी त्याग करना 3. आरती और मंगलदीपक सहित जिन प्रतिमा की द्रव्य पूजा करना एवं चैत्यवंदन पूर्वक भावपूजा करना 4. दैवसिक प्रतिक्रमण करना 5. आचार्य एवं रूग्ण आदि साधुओं की सेवा - शुश्रुषा करना 6. स्वाध्याय करना 7. पारिवारिक सदस्यों के साथ धर्मकथा आदि करना ।
रात्रिकालीन कर्त्तव्य
श्राद्धविधिप्रकरण के अनुसार श्रावक के रात्रिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं 47 1. यथाशक्ति ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना 2. देव - गुरू और धर्म के उपकारों का स्मरण करना 3. अरिहंतादि चार की शरण स्वीकार करना 4. सर्व जीवों से क्षमायाचना करना 5. प्राणातिपात आदि अठारह पापस्थानों का त्याग करना 6. दुष्कृत कार्यों की निन्दा एवं सुकृत की अनुमोदना करना 7. आहार - शरीर - उपधि के त्याग पूर्वक सागारी अनशन स्वीकार करना 8. पाँच बार नमस्कारमंत्र का स्मरण करना 9. अर्द्धरात्रि में निद्रा खुल जाए तो शरीर की अशुचि का चिंतन करना और धर्मध्यान आदि में प्रवृत्त होना।
चातुर्मासिक कर्त्तव्य
चौदहवीं शती के प्रसिद्ध जैनाचार्य रत्नशेखरसूरि ने गृहस्थ के चातुर्मास सम्बन्धी जो कर्त्तव्य बतलाये हैं वे निम्नानुसार हैं 48
1. ज्ञानाचार आदि पाँच आचारों का पालन करना 2. जिन चैत्यों के दर्शन करना 3. व्याख्यान श्रवण करना 4. ज्ञानपंचमी पर्व के दिन ज्ञान की विशिष्ट आराधना करना 5. जिनमन्दिर - उपाश्रय आदि की शुद्धि एवं संरक्षण करना 6. गुरूमहाराज प्रवचन देने से पहले गहुँली करना 7. प्रतिदिन जिनदर्शन, वन्दन एवं पूजन करना 8. जिनप्रतिमा की शुद्धि करना 9 त्रस जीवों की रक्षा करना 10. गृह सम्बन्धी सभी कार्य यतना और उपयोग पूर्वक करना 11. अभ्याख्यान