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________________ जैन गृहस्थ के प्रकार एवं उसकी धर्माराधना विधि ...21 परिवार में धर्म संस्कारों का सींचन कर सके, इस लक्ष्य से अनेकविध मार्गों का प्रतिपादन किया गया है। उनमें से कुछ विशिष्ट इस प्रकार हैंसामान्य कर्त्तव्य ___ 'मण्हजिणाणं' नामक सज्झाय पाठ में गृहस्थ श्रावक के सामान्य छत्तीस कर्तव्य बतलाये गए हैं। उनके नाम ये हैं-1. जिनाज्ञा का पालन करना 2. मिथ्यात्व का परिहार करना 3. सम्यक्त्व को धारण करना 4. षडावश्यक में तत्पर रहना 5. पर्व तिथियों में पौषध व्रत करना 6. दान करना 7. शील का पालन करना 8. तप करना 9. शुभ भाव पूर्वक धर्म आराधना करना 10. स्वाध्याय करना 11. गुणीजनों को नमस्कार करना 12. परोपकार करना 13. यतनापूर्वक प्रवृत्ति करना 14-16. जिनपूजा, जिनस्तवन एवं गुरूस्तवन करना 17. साधर्मिक वात्सल्य करना 18. व्यवहारशुद्धि रखना 19. रथयात्रा करना 20. तीर्थयात्रा करना 21. उपशम(शांत) भाव रखना 22. विवेक दृष्टि युक्त होना 23. संवर करना 24. भाषासमिति का पालन करना 25-30. पृथ्वीकाय आदि षड्जीवनिकायों पर करूणा करना 31. धार्मिक पुरूषों का संग करना 32. इन्द्रियों का दमन करना 33. चारित्र परिणाम में वृद्धि करना 34. संघ का बहुमान करना 35. जिनागम लिखवाना और 36. जैन धर्म की प्रभावना करना।43 जैन श्रावक को इन छत्तीस आचारों का पालन यथाशक्ति अवश्य करना चाहिए। ___ आचार्य सोमप्रभसूरि ने श्रावक के छ: कर्तव्य बतलाए हैं जो मनुष्य जन्म की सफलता में परम निमित्तभूत हैं- 1. जिनपूजा 2. गुरूभक्ति 3. जीवदया 4. सुपात्रदान 5. गुणानुराग और 6. जिनवाणी श्रवण।44 दैनिक कर्त्तव्य आचार्य रत्नशेखरसूरि के अनुसार श्रावक के दैनिक कर्तव्य निम्नांकित हैं45-1. पूर्वदिन की चार घड़ी रात शेष रहने पर उठना 2. नमस्कार महामंत्र का स्मरण करना 3. सामायिक एवं रात्रिक प्रतिक्रमण करना 4. देव दर्शन एवं वासपूजा आदि करना 5. गुरूवंदन करना 6. गृह व्यवस्था देखना 7. जिन प्रवचन सुनना 8. उपयोग पूर्वक स्नान करना 9. जिनप्रतिमा की सविधि पूजा करना 10. मर्यादित भोजन करना 11. यथाशक्ति सुपात्रदान देना 12. पापरहित
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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