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12... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... आदि के समय कदाचित् उग्रता प्रकट कर देते हैं, किन्तु जीवन निर्वाह के प्रसंग में उनका हृदय वात्सल्य से परिपूर्ण रहता है। ऐसे गृहस्थ को 'भाईसमान' श्रावक कहा है।
3. मित्र के समान- जो गृहस्थ श्रमणों के प्रति कारणवश प्रीति और कारणविशेष से अप्रीति दोनों रखते हैं उनकी तुलना मित्र से की गई है। ऐसे श्रमणोपासक अनुकूलता के समय प्रीति रखते हैं और प्रतिकूलता के समय उपेक्षा करने लगते हैं। अत: उन्हें मित्र समान श्रावक कहा है।
4. सपत्नि के समान- जिनके भीतर श्रमणों के प्रति वात्सल्य या भक्तिभाव नहीं होता, केवल नाम से ही श्रमणोपासक कहलाते हैं उनकी तुलना सपत्नी(सौत) से की गई है। ____ इस प्रकार श्रमणोपासक के पूर्वोक्त चार प्रकार भक्ति-भाव और वात्सल्य की हीनाधिकता के आधार पर कहे गए हैं।
स्थानांगसूत्र में श्रमणोपासक के अन्य चार प्रकार भी निर्दिष्ट हैं16__ 1. आदर्शसमान- जो श्रावक आदर्श(दर्पण) के समान निर्मल चित्तवाला होता है वह साधु द्वारा प्रतिपादित उत्सर्ग मार्ग और उपवादमार्ग के आपेक्षिक कथन को यथावत् स्वीकार करता है अत: वह आदर्श के समान कहा गया है।
2. पताकासमान- जो श्रावक पताका(ध्वजा) के समान अस्थिर चित्तवाला होता है वह विभिन्न प्रकार की देशना रूप वायु से प्रेरित होने के कारण किसी एक निश्चित तत्त्व पर स्थिर नहीं रह पाता अत: उसे पताका के समान कहा है।
3. स्थाणुसमान- जो श्रावक स्थाणु(सूखे वृक्ष के ढूंठ) के समान विनम्र स्वभाव से रहित होता है, अपने कदाग्रह को समझाए जाने पर भी नहीं छोड़ता है अत: उसे स्थाणुसमान कहा है।
4. खरकण्टकसमान- जो श्रावक कदाग्रही होता है, उसे कोई सन्त पुरूष समझाने का प्रयत्न करें तो वह तीक्ष्ण दुर्वचन रूप कण्टकों से उसे भी विद्ध कर देता है अत: उसे खरकण्टक समान कहा है।
इस प्रकार चित्त की निर्मलता, अस्थिरता और कुटिलता की अपेक्षा चार भेद कहे गये हैं। ध्यातव्य है कि श्रावक के उक्त प्रकार उनके स्वभाव आदि के आधार पर वर्णित हैं।