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________________ 410... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक 28. वही, अ.3, पृ.56 29. भो भो सुलद्धनियजम्म 30. नारयतिरियगईओ, तुज्झ अवस्सं निरूद्धाओ । उपधानप्रकरण, मानदेवसूरि, गा. 45 नो बंधगो य सुंदर ! तुममित्तो अयस-नीयगोत्ताणं । नयदुलहे तुह, जम्मंतरे वि एसो नमोक्कारो॥ 31. अन्नं च कयावि जियलोए। दास पेसा दुभगा, नीया विगलिंदिया चेव ।। उपधानप्रकरण, गा. -46 * 32. उत्तमकुलंमि उक्किट्ठलट्ठसव्वंग सुदंरा पयडी । सयलकलापत्तट्ठा, जणमणआणंदणा होउं ॥ वही गा. 51 वही गा.-51 33. वही, गा.-52 34. एवं कयउवहाणे, भवंतरे सुलभबोहिओ होज्जा । एयज्झवसाणो वि हु, गोयम ! आराहगोभणिओ।। 40. वही, पू. - 10 41. वही, पृ. 9 वही, गा. - 15 35. जो उ अकाऊणमिमं गोयम ! गिण्हिज्ज भत्तिमंतोवि । सो मणुओ दट्ठव्वो, अगिण्हमाणेण सारिच्छो।। वही, गा. - 16 36. पढमं चिय कन्नाहेडएण, जं पंचमंगलमहीयं । तस्स वि उवहाणपरस्स, सुलहिया बोहि निद्दिट्ठा ॥ .... वही, गा. - 18 37. कुछ आचार्य छठवां और सातवाँ- इन दो पदों की एक संपदा, आठवें पद की एक तथा नौवें पद की एक- इस प्रकार तीन संपदाएँ मानते हैं। 38. वाचना उपवास के दिन होती है। 39. विधिमार्गप्रपा, पृ. -9
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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