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________________ 388... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक .... उपधान सम्बन्धी अन्य विधि-विधान वाचना विधि __जिस दिन जिस सूत्र की वाचना हो, उस दिन वाचना ग्रहण करने के पूर्व उस सूत्र के नामोच्चारणपूर्वक सामान्य विधि करते हैं। यहाँ पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध सूत्र के नामोच्चारणपूर्वक वाचनाविधि दर्शाई जा रही है, शेष सत्रों को ग्रहण करते समय उन-उन सूत्रों के नामोच्चारणपूर्वक यही विधि करना चाहिए। वसतिप्रवेदन विधि-. सर्वप्रथम दिन के तीसरे प्रहर में उपधान सम्बन्धी सर्वक्रिया सम्पन्न करने के पश्चात चतुर्विध-आहार का प्रत्याख्यान करें। उसके बाद उपधानवाही वसति के चारों ओर सौ-सौ कदम पर्यन्त भूमि का अवलोकन करें। उस भूमि पर अस्थि-रूधिर आदि मलिन पदार्थ गिरे हुए हों, तो उन्हें दूर करें। फिर 'निसीहि-3' बोलते हुए गुरू के समक्ष आकर कहे-'भगवन् ! सुद्धावसही' - 'हे भगवन् ! वसति शुद्ध है।' गुरू कहे- 'तहत्ति'- जैसा तुमने कहा, वह सही है।' • तदनन्तर खुले हुए स्थापनाचार्य के सम्मुख खड़े होकर एक खमासमणपूर्वक ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर एक खमासमण पूर्वक कहे'वसति पवेवा मुहपत्ति पडिलेहेमि'- वसति प्रवेदन के निमित्त मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करूँ? फिर गुरू की अनुमति प्राप्त कर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। पुनः, एक खमासमण देकर कहें- "इच्छा. संदि. भगवन् ! वसहिं पवेएमि ?"- हे भगवन् ! आपकी इच्छापूर्वक वसति का प्रवेदन करूँ? गुरू कहे- करो। पुन: शिष्य एक खमासमण देकर बोलें- "भगवन् ! सुद्धावसही" गुरू कहे- तहत्ति।149 . सामाचारी नियम के अनुसार वाचना (सूत्रग्रहण) विधि प्रारम्भ करने के पूर्व उपधानवाही वसति का निरीक्षण करें एवं गुरू के समक्ष वसति का प्रवेदन करें। वसति निरीक्षण से तात्पर्य है-वसति के चारों ओर सौ-सौ कदमपर्यन्त भूमि का निरीक्षण करना तथा यह ज्ञात करना कि वह स्थल मृत कलेवर आदि से अशुद्ध तो नहीं है? यदि अशुद्ध हों, तो वहाँ सूत्र-पाठ ग्रहण करना नहीं कल्पता है, क्योंकि अशुद्ध भूमि में सूत्र आदि का ग्रहण, पुनरावर्तन आदि करना दोषयुक्त माना गया है। जैन आगम साहित्य में सूत्र स्वाध्याय कब और कहाँ नहीं करना
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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