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________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन 387 ... पूर्व में नंदीपवेयणाविधि वर्णित की गई है। उपधान के दिनों में वही विधि प्रतिदिन प्राभातिक प्रतिलेखन विधि के बाद की जाती है। केवल उपधान प्रवेश के दिन यह पवेयणा विधि पौषध ग्रहण करने से पूर्व करते हैं । इस पवेयणाविधि के साथ राइयमुहपत्ति विधि भी की जाती है। पौषधविधि अधिकार में राइयमुहपत्ति विधि की चर्चा की जा चुकी है । पुनः संक्षेप में वह इस प्रकार है उपधानवाही एक खमासमणपूर्वक राइयमुहपत्ति - प्रतिलेखन करने का आदेश लेकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें। फिर दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन करें। फिर 'इच्छामिठामि' पाठ पूर्वक रात्रिक सम्बन्धी आलोचना करें। 'सव्वस्सवि राइय' का सूत्र बोलें। फिर मिथ्यादुष्कृत दें। उसके बाद पुनः दो बार द्वादशावर्त्तवन्दन कर 'सुहराई' एवं 'अब्भुट्टिओमि' सूत्रपूर्वक गुरू को वन्दन करें। तपागच्छ आदि परम्पराओं में वन्दनषट्क एवं राइयमुहपत्ति विधि पूर्ववत ही सम्पन्न करते हैं। 147 क्षमाश्रमणदशकम्— यह विधि पौषधग्रहण से सम्बन्धित सभी विधान पूर्ण होने के बाद की जाती है। इस विधि में दो खमासमणपूर्वक 'बहुवेलं', दो खमासमणपूर्वक ‘बइसणं', दो खमासमणपूर्वक 'सज्झायं', दो खमासमणपूर्वक 'पांगुरणं' और दो खमासमणपूर्वक 'कटासन' का आदेश ग्रहण किया जाता है। इस प्रकार इस विधि में दस खमासमण होते हैं। यहाँ तक उपधान में प्रतिदिन करने योग्य प्रभात सम्बन्धी विधि कही गई है । उसके बाद जिनालय में जाकर चैत्यवन्दन करें तथा अन्य धार्मिक क्रियाओं में संलग्न बनें। उघाडापौरूषी विधि - उपधानतप में दिन का पौन प्रहर बीतने पर प्रतिदिन उग्घाड़ापौरूषी की क्रिया की जाती है। यह विधि पात्र प्रतिलेखन से सम्बन्धित है। इस तपोनुष्ठान में प्रत्याख्यान पारण विधि, स्थंडिलगमन विधि, स्थंडिलआलोचना विधि, सायंकालीनप्रतिलेखन विधि, चौबीसमांडला विधि, रात्रिसंथारा विधि भी की जाती हैं। इनका विधिवत विवेचन पौषधविधि अधिकार में किया जा चुका है। यहाँ प्रसंगानुसार जानने योग्य यह है कि उपधान तप में वाचनाविधि, कायोत्सर्गविधि को छोड़कर शेष क्रियाएँ पौषधविधि के समान ही होती हैं अतः यहाँ पुनरावृत्ति करना आवश्यक प्रतीत नहीं होता है। 148
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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