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________________ 376... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक प्रस्तुत विधि का सम्यक् एवं सुन्दर प्रतिपादन दृष्टिगोचर होता है। हीरप्रश्न एवं सेनप्रश्न में उपधान सम्बन्धी कई प्रश्नों के सटीक समाधान भी प्रस्तुत किए गए हैं। .... इस प्रकार हम देखते हैं कि उपधान की परिपाटी आगमयुगीन है। यद्यपि प्रचलित उपधान विधि का स्वरूप महानिशीथ सूत्र को छोड़कर अन्य मूल आगमों में प्राप्त नहीं होता है किन्तु विक्रम की 12 वीं शती के परवर्ती ग्रन्थों का अवलोकन करने से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मध्यकाल में ही उपधान से सम्बन्धित विधि-विधानों का उत्तरोत्तर विकास हुआ। समाहारत: उपधान एक भावपरक आध्यात्मिक साधना है, किन्तु उस भूमिका तक पहुँचने के लिए द्रव्य क्रियाओं एवं अनुष्ठानों का आलम्बन लेना अति आवश्यक है। ये विधि-विधान द्रव्य साधना पर आधारित हैं, परन्तु भाव साधना में प्रवेश करने हेतु पुष्ट आलम्बन रूप बनते हैं। मालारोपण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि यदि हम मालारोपण विधि की अपेक्षा ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन करें, तो इसका प्रारम्भिक स्वरूप महानिशीथसूत्र के सिवाय किसी भी जैन आगम साहित्य में उपलब्ध नहीं होता है । उसमें यह सूचित किया गया है कि मालारोपण विधि शुभ मुहूर्तादि के दिन ही करनी चाहिए, न कि अपनी सुविधानुसार। 111 इससे परवर्तीकालीन सुबोधासामाचारी 112, विधिमार्गप्रपा 113, आचारदिनकर114 आदि ग्रन्थों में भी शुभमुहूर्त, श्रेष्ठ चन्द्रबल के समय ही मालारोपण करने का निर्देश है। यदि हम प्रचलित परम्परा के आधार पर अनुष्ठित की जाने वाली समुद्देश - विधि एवं अनुज्ञा - विधि के बारे में विचार करें, तो इस सम्बन्ध में महानिशीथसूत्र संकेत मात्र करता है। वहाँ सप्त थोभवंदन का कोई उल्लेख नहीं है, परन्तु प्रदक्षिणा के समय 'नित्थार पारगो भवेज्जा' बोलते हुए उस पर गंधमुट्ठियाँ प्रक्षेपित करने का उल्लेख स्पष्ट रूप से है । 115 वर्तमान में यह विधि जिस रूप में प्रचलित है, वह स्वरूप सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा, आचारदिनकर में ही देखा जाता है। उनमें भी विधिमार्गप्रपा अति स्पष्ट विवेचन करती है, अतः मालारोपण के दिन किए जाने वाले विधि-विधानों को विधिमार्गप्रपा के आधार पर ही उल्लिखित किया है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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