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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...377 यदि हम यह चिन्तन करें कि माला किसकी होनी चाहिए और माला पहिनाने का वास्तविक अधिकारी कौन हो सकता है? तो महानिशीथसूत्र में जिनप्रतिमा पर पूजा के लिए चढ़ाई गई सुगंधित- अम्लान तथा श्वेतपुष्पों की माला को गुरू द्वारा पहनाए जाने का स्पष्ट उल्लेख हुआ है।116 इससे सूचित होता है कि आगम परम्परानुसार योग्य आचार्य द्वारा ही माला पहनाई जानी चाहिए। आज भी बहुत से उपधानवाही गुरू के कर-कमलों से ही माला धारण करते हैं और कुछ अपने बन्ध-वर्ग के हाथों से माला पहनते हैं। इस प्रकार वर्तमान में दोनों तरह की परम्पराएँ मौजूद हैं। श्रीचन्द्राचार्य117(12वीं शती), जिनप्रभसूरि118 एवं वर्धमानसूरि119 ने बन्धुवर्ग के हाथों माला पहनने का सूचन किया है। वर्तमान में इन्हीं ग्रन्थों के आधार पर मालारोपण का विधान करवाया जाता है। महानिशीथसूत्र में वर्णित उपधान विधि
भगवान् महावीर से गौतमस्वामी ने प्रश्न किया-यदि नमस्कारमंत्र आदि सूत्रों का उपधान करना अति आवश्यक है, तो वह किस विधि एवं किस तपपूर्वक करना चाहिए?
नमस्कारमंत्र उपधान- भगवान महावीर ने कहा-हे गौतम! ‘पढमं नाणं तओ दया'-इस शास्त्रवचन के अनुसार ज्ञान की प्राधान्यता स्वतःसिद्ध है। यह ज्ञान विनयपूर्वक पढ़ना चाहिए तथा उस ज्ञानोपधान (ज्ञानग्रहण की प्रक्रिया) का प्रारंभ सुप्रशस्त तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र, योग, लग्न और चन्द्रबल में करना चाहिए। साथ ही उपधानवाही को अहंकार का त्याग कर, उत्पन्न श्रद्धा-संवेग से युक्त बन, उदार एवं अत्यंत शुभ अध्यवसाय के साथ भक्ति और बहुमानपूर्वक, निदान आदि से रहित, द्वादश भक्त (पाँच उपवास) तप के साथ जिनालय में या जंतुरहित निर्दोष स्थल में नए-नए संवेग के परिणाम से उत्पन्न हुए अत्यंत गाढ़ और सतत प्रकट होने वाले शुभ भाव विशेष से उल्लसित होकर, अत्यन्त दृढ़ हृदयपूर्वक, पाँच अध्ययन और एक चूलिकारूप पंचमंगलमहाश्रुत- स्कन्ध, जो श्रेष्ठ देवताओं से अधिष्ठित बना हुआ, तीन पदों से युक्त, एक आलापक वाला, सात अक्षर परिमाण वाला, अनंतानंत अर्थ से समन्वित, सर्वमहामंत्रों और श्रेष्ठ विद्याओं का परम बीज रूप है, उसमें से 'नमो अरिहंताणं'-इस प्रथम अध्ययन को पढ़ना चाहिए और उस दिन आयंबिल