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________________ 370... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक आता है। आज प्रायः 1. पंचमंगल महाश्रुतस्कन्ध 2. प्रतिक्रमण श्रुतस्कंध 3. अर्हत्चैत्यस्तव और 4. श्रुतस्तव एवं सिद्धस्तव - इन चार सूत्रों का उपधान पूर्ण होने के दूसरे या तीसरे दिन ही मालारोपण विधि कर ली जाती है। दूसरे, आजकल संहनन शैथिल्य, शारीरिक दौर्बल्य आदि कुछ कारणों से सभी सूत्रोंपधानों को युगपत् रूप से वहन करने की परिपाटी मन्द सी हो गई है अतः उपधान के छ: प्रकारों को प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय - इस प्रकार तीन भागों में विभक्त कर दिया गया है। प्रथम उपधान में उक्त चार सूत्रों का अध्ययन होता है। द्वितीय उपधान में शक्रस्तवसूत्र का और तृतीय उपधान में नामस्तवसूत्र का अध्ययन होता है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि भले ही वर्तमान सामाचारी में पूर्वोक्त चार सूत्रों का तपोपधान करवाकर मालारोपण कर दिया जाता हो, किन्तु मालारोपण विधि सम्पन्न करने के पूर्व पंचमंगलमहाश्रुत स्कन्ध आदि चार सूत्रों के साथसाथ शक्रस्तव एवं नामस्तवसूत्र की समुद्देश और अनुज्ञा-विधि भी करवा दी जाती है, द्वितीय एवं तृतीय उपधान के समय शेष दो सूत्रों की उद्देश - विधि करवाई जाती है। इससे सूचित होता है कि मालारोपण के दिन उक्त छः प्रकार के उपधान (सूत्र) की समुद्देश - विधि एवं अनुज्ञा - विधि एक साथ करवा दी जाती है । समुद्देश एवं अनुज्ञाविधि की पूर्णता ही मालारोपण है। माला - महोत्सव का आयोजन क्यों ? जिनशासन में माला महोत्सव के दिन उछामणी (बोली) करने की परम्परा अतिप्राचीन है। जो व्यक्ति अधिक लाभ लेने के इच्छुक होते हैं, उन्हें पुण्य लाभ प्रदान करने के निमित्त उछामणी की प्रथा का उद्भव हुआ है। जैन शास्त्रों में इन्द्रमाला, माघमाला, संघमाला आदि अनेक प्रकार की मालाएँ पहनने एवं उस माला को पहनने के निमित्त उछामणी बोलने की रोमांचक घटनाएँ पढ़ने को मिलती हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर महाराजा कुमारपाल ने संघ निकाला था, उस समय जगडुशाह श्रावक ने तीन-तीन बार इन्द्रमाला पहनने का लाभ सवासवा करोड़ द्रव्य की राशि बोलकर लिया था तथा प्रत्येक बार माला का मूल्य चुकाने के बाद ही माला पहनी थी। पेथड़शाह ने संघमाला का लाभ 56 घड़ी
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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