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उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन
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मालाधारण क्यों की जाए ?
उपधान-तप की पूर्णाहूति होने के पश्चात् उपधानवाही को माला पहनाने का प्रयोजन क्या है ? इस सम्बन्ध में जैनाचार्यों ने कहा है कि उपधान पूर्णाहूति के निमित्त पहनाई जाने वाली यह माला मुक्तिरूपी स्त्री को वरण करने की माला है, सुकृत पुण्यरूपी जल सिंचन के लिए अरहट्ट माला है, गुणों की प्राप्ति करवाने वाली गुण माला है। इस माला को धन्य पुरूष ही धारण कर सकता है।
इस माला को मुक्तिमाला कहा गया है। माला को अभिमन्त्रित करते समय एवं पहनाते समय मालाग्राही के लिए यह भावना की जाती है कि यह जन्ममरण के चक्रों का शीघ्रातिशीघ्र अन्त करके सिद्धगति का वरण करें। इसी दृष्टि से इसे मुक्तिमाला की उपमा दी गई है।
दूसरे, जिस उपधान तप में स्व-पर को प्रकाशित करने वाला ज्ञान है, आत्मा की शुद्धि करने वाला तप है तथा विशिष्ट गुण वाले संयम की आराधना है, उसमें प्रवेश करने वाले पुण्यात्मा के लिए मुक्ति सहज बन जाती है, इसलिए भी यह माला शिवमाला, मुक्तिमाला, गुणमाला कही गई है। एक जगह उल्लिखित है
गच्छनायक पासे, पहिरे माल विसाल सुकृत जल की घटमाला, मुक्ति रमणी वरमाला वर मूर्तरूप गुणमाला, गणपति से पहिरूँ माला ।। इस पद्य से स्पष्ट है कि यह सामान्य माला नहीं है, जिसे किसी के भी हाथों पहनी जा सके। वस्तुतः मालारोपण साधना का कलशारोपण और साध्य की सिद्धि का आश्वासन है। यही मालारोपण का महत्व है ।
मालारोपण कब हो?
महानिशीथसूत्र के अनुसार सभी सूत्रों के उपधान को वाचना एवं तपपूर्वक ग्रहण कर लेने के पश्चात् शुभ तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र, योग, लग्नादि को देखकर मालारोपण करना चाहिए |
सेनप्रश्न में कहा गया है कि जब से पहला उपधान प्रारम्भ किया हो, तब से लेकर बारह वर्ष समाप्ति के पूर्वकाल तक मालारोपण कर लेना चाहिए, अन्यथा शेष उपधान की तपाराधना विफल हो जाती है। 94 जब हम वर्तमान परम्परा का अवलोकन करते हैं, तो मूल विधान से कुछ परिवर्तित स्वरूप नजर