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366... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक ....
परमात्मा की श्रेष्ठ मुद्रा(निशानी) है।88 सामान्यतया मालारोपण के दिन अधिकार प्राप्त गुरू द्वारा उपधानवाही को उपधानयोग्य सूत्रों की समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि करवाई जाती है। उसके बाद उपधानवाही को यावज्जीवन के लिए प्रतिदिन त्रिकालदर्शन करना, प्रात:काल जिनप्रतिमा के दर्शन किए बिना पानी नहीं पीना, अभक्ष्य आदि पदार्थों का सेवन नहीं करना-ऐसे कुछ अभिग्रह आदि नियम दिलवाए जाते हैं। तदनन्तर उसके दोनों कंधों पर पूर्व दिन में अभिमंत्रित की गई माला पहनाई जाती है। संक्षेप में यही मालारोपण है। माला धारण करवाने का अधिकारी कौन?
मालारोपण करवाने का वास्तविक अधिकारी कौन हो सकता है? इस सम्बन्ध में महानिशीथसूत्रकार ने कहा है89- "सहत्थेणं उभयखंधेसुमारोवयमाणेन गुरूणा" अर्थात जिस व्यक्ति के लिए पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध आदि सूत्रों का समुद्देश कर उसकी अनुज्ञा दे दी गई है, उसके दोनों कंधों पर गुरू भगवन्त द्वारा माला आरोपित की जाए। इस पाठांश से निश्चित होता है कि मालारोपण का वास्तविक अधिकारी गुरू को माना गया है। पूर्वकाल में यही परिपाटी प्रचलित थी।
प्रचलित प्रथा के अनुसार वर्तमान में बहिन भाई को और भाई बहिन को माला पहनाते हैं। किसी अपेक्षा से देखें, तो आज भी मूलविधि अस्तित्व में है। प्रथम तो वह माला गुरू द्वारा अभिमन्त्रित कर पारिवारिक सदस्यों को दी जाती है। उसके बाद ही वह माला उपधानवाही को पहनाई जाती है। प्राचीनकाल में गुरू स्वयं माला पहनाते थे। आज भी कुछ लोग गुरू के हाथों ही माला पहनते हैं। यह माला जीवन में एक ही बार पहनी जाती है। इसलिए मालाग्राही के हृदय में अपूर्व उत्साह होता है अत: इस उत्साह को प्रकट करने के निमित्त मालारोपण के पूर्व दिन बड़ी धूमधाम से माला का वरघोड़ा निकालते हैं। मालारोपण की शास्त्रीय विधि ___महानिशीथसूत्र के अनुसार सभी सूत्रों के उपधान पूर्ण हो जाएं, उसके बाद जिस दिन शुभयोग और चन्द्र बलवान् हों, उस दिन उपधानवाही अपने सामर्थ्य के अनुसार देव-गुरू-धर्म की विशिष्ट भक्ति करें, जिनेश्वर परमात्मा का विविध प्रकार से पूजोपचार करें, गुरू भगवन्तों को वस्त्र आदि प्रदान कर उन्हें प्रतिलाभित करें। चतुर्विध-संघ एवं समग्र बंधुवर्ग के साथ देववंदन करें। फिर