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________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...367 गुणवान् साधुओं को वंदन और साधर्मिक बन्धुओं को आदर-सत्कार एवं सम्मानपूर्वक प्रणाम आदि करें। इसी के साथ उन्हें मूल्यवान्, कोमल एवं स्वच्छ वस्त्रादि प्रदान करें तथा भोजन आदि कराएं। उस दिन गुरू उपधानवाहियों को धर्म देशना प्रदान करें। परम्परा की दृष्टि से विचार करें, तो वर्तमान में इसका कुछ भिन्न स्वरूप दिखाई देता है। आजकल प्राय: उपधानतप की पूर्णाहूति के अगले (दूसरे) दिन ही मालारोपण-विधि सम्पन्न कर ली जाती है, यह विचारणीय है। मालारोपण का दूसरा कृत्य यह कहा जा सकता है कि जो माला उपधानवाहक धारण करने वाला है, उस माला को स्वर्ण, रजत या अन्य उत्तम थाल में रखकर मूल्यवान् वस्त्र से अलंकृत किया जाता है उसी के साथ मिठाई, मेवा आदि के भी अनेक थाल तैयार किए जाते हैं। जिनपूजा एवं ज्ञान के उपकरण भी तैयार किए जाते हैं। गुरू द्वारा वर्धमानविद्या या सूरिमंत्र आदि से उस माला को अंभिमंत्रित किया जाता है। ___मालारोपण के एक दिन पूर्व माला के सम्मानार्थ एवं प्रभावनार्थ माला का भव्य वरघोडार (जुलूस) निकाला जाता है। वरघोड़े में पूर्व सज्जित किए गए सभी थाल साथ में रखते हैं। माला पहनने वाला उपधानवाही अपनी सामर्थ्य के अनुसार वाहन जैसे-पालकी, रथ आदि में सवार होकर वर्षीदान देते हुए वरघोड़े में साथ चलता है। मालाग्राही उस माला को वरघोड़े में अपने सन्निकट ही रखता है तथा उसके साथ ही जिनप्रतिमा की अष्टप्रकारी-पूजा से सम्बन्धित सामग्री आदि भी रखी जाती है। यदि शोभा यात्रा में एक से अधिक उपधानवाही हों, तो उनमें से प्रत्येक अपनी माला अपने समीप ही रखते हैं। शोभा यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से होती हुई मुख्य स्थल पर पहुँचती है, जहाँ गुरू सभी को मंगलपाठ सुनाते हैं और माला को मंगल-स्थान पर पधराते हैं। कुछ आचार्य वरघोड़ा होने के बाद माला को अभिमन्त्रित करने का निर्देश करते हैं, किन्तु इस सम्बन्ध में इतना निश्चित है कि मालारोपण के पूर्व-दिन ही वह अभिमन्त्रित कर दी जाती है, क्योंकि अभिमन्त्रित माला के समक्ष रात्रिभर जागरण किया जाता है। फिर दूसरे दिन उस माला को शुभ मुहूर्त में गुरू भगवन्त पारिवारिक सदस्यों में ज्येष्ठ पुरूष या भाई को मंगलमय भावनाओं के साथ प्रदान करते हैं। उसके बाद कुटुम्बी जन उल्लास व उमंगपूर्वक उपधानवाही को माला पहनाते हैं। यह विधि जिनबिम्ब के समक्ष की जाती है।
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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