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________________ उपधान तपवहन विधि का सर्वाङ्गीण अध्ययन ...361 अन्तिम गाथा की वाचना तीसरी वाचना के साथ ही देते हैं। चौथा उपधान- यह चैत्यस्तव (अरिहंतचेईयाणं) नाम का चौथा उपधान पूर्वकाल से लेकर अब तक मूलविधि के रूप में ही प्रवर्तित है। इस उपधान में एक उपवास और तीन आयंबिल के अन्त में 1. अरिहंत., 2. सद्धाए., 3 अन्नत्थ., -इन तीन अध्ययनों की एक वाचना दी जाती है। पांचवाँ उपधान- नामस्तव(लोगस्ससूत्र) नामक पाचवें उपधान में अट्ठम तप करने के बाद प्रथम गाथा की पहली वाचना, फिर बारह आयंबिल-परिमाण तप होने के बाद तीन गाथाओं की दूसरी वाचना और अंत में तेरह आयंबिलपरिमाण का तप होने के बाद शेष तीन गाथाओं की तीसरी वाचना दी जाती है। सुबोधासामाचारी में नामस्तव की अन्तिम तीन गाथाओं को प्रणिधानत्रिक कहा गया है।78 वर्तमान परिपाटी में जावंतिचेइयाइं०, जावंतकेविसाहू और जयवीयरायसूत्र को प्रणिधानत्रिक कहा गया है। चैत्यवंदन के अधिकार में सिद्धाणंबुद्धाणं सूत्र की तीन गाथाओं को प्रणिधानत्रिक के समान माना गया है। छठवां उपधान- प्राचीन परम्परानुसार विक्रम की 12वीं शती तक एक उपवास, पाँच आयंबिल और छठ(बेला) की तपस्या होने के बाद श्रुतस्तव(पुक्खरवरदीसूत्र) की प्रारम्भिक दो गाथा और तीसरी काव्यगाथा की एक वाचना दी जाती थी। ये तीन अध्ययन के रूप में माने जाते थे। चौथी काव्यगाथा के आदि के दो पदों का चौथा अध्ययन और अन्तिम दो पदों का पाँचवां अध्ययन माना जाता था। सिद्धस्तव (सिद्धाणंबुद्धाणं सूत्र) की तीन गाथाओं की वाचना उपधान वहन किए बिना ही दी जाती थी तथा उज्जिंत. और चत्तारि.- इन दो गाथाओं की वाचना नहीं दी जाती थी,79 परन्तु वर्तमान में पहले दो उपवास होने पर श्रुतस्तवसूत्र की और तप की पूर्णता होने पर वेयावच्चगराणंसूत्र के साथ सिद्धाणंबुद्धाणंसूत्र की वाचना दी जाती है। वर्तमान परिपाटी के अनुसार वहनयोग्य सूत्र उपधान में अनुक्रम से आठ, आठ, बत्तीस, तीन, पच्चीस और पाँच आयंबिल गिने जाते हैं। तदनुसार उपयुक्त सूत्रों के अध्ययन भी तथाकथित आठ-आठ आदि की संख्या में जानना चाहिए। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि आगमयुग से लेकर वर्तमान युग तक के वाचनाक्रम में द्रव्यादि की अपेक्षा काफी परिवर्तन हुए हैं और यह परिवर्तन
SR No.006240
Book TitleJain Gruhastha Ke Vrataropan Sambandhi Vidhi Vidhano ka Prasangik Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, C000, & C999
File Size37 MB
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