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360... जैन गृहस्थ के व्रतारोपण सम्बन्धी विधियों का प्रासंगिक
अनुज्ञाविधि तो मालारोपण के दिन माला पहनने के पूर्व करवाई जाती है। उत्सर्ग-विधि के अनुसार प्रवर्त्तमान सूत्र के तपवहन काल में ही उसकी उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा विधि कर देनी चाहिए। 74
वाचनाओं का प्राचीन एवं अर्वाचीन क्रम
प्रथम उपधान- महानिशीथसूत्र 75 के अनुसार प्रथम नमस्कारमंत्र उपधान में पाँच उपवास होने के पश्चात् पाँच दिन आयंबिल करके, पाँच अध्ययनों की पृथक्-पृथक् वाचनाएँ दी जाती थी और छठवें दिन आयंबिलपूर्वक प्रथम चूला की, सातवें-आठवें दिन भी आयंबिलपूर्वक द्वितीय तृतीय चूला की वाचना दी जाती थी तथा अंत में पंचमंगलमहाश्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा निमित्त अट्ठम तप करवाया जाता था, किन्तु विक्रम की 11 वीं शती पश्चात् पाँच उपवास के अनन्तर पाँच अध्ययनों की एक साथ वाचना देने की प्रवृत्ति प्रारम्भ हुई। तदनुसार वर्तमान में पाँच पदों की एक साथ वाचना दी जाती है और शेष सात (साढ़े सात) उपवास-परिमाण तप पूरा होने पर दूसरी तीन चूलाओं (अध्ययनों) की वाचना दी जाती है। 76
दूसरा उपधान- इरियावहि श्रुतस्कंध नामक दूसरे उपधान में पाँच अध्ययन और तीन चूलिकाएँ हैं ।
यह सूत्रोपधान महानिशीथसूत्र के अनुसार पंचमंगल महाश्रुतस्कन्धसूत्र के समान ही वहन होता था, किन्तु बाद में विक्रम की 12 वीं शती के समय से 1. इच्छामि०, 2. गमणा०, 3. पाण०, 4. ओसा०, 5. जे मे० - इन पाँच अध्ययनों की पहली वाचना पाँच उपवास करने के बाद दी जाने लगी और वर्तमान में पाँच उपवास-तप का परिमाण पूर्ण होने के बाद एक साथ दी जाती है। 77 6. एगिन्दिया०, 7. अभिहया ०, 8. तस्स० - ये तीन पद चूलिका के रूप में माने गए हैं। इन तीनों की वाचना सुबोधासामाचारी ग्रन्थ के अनुसार दी जाती है।
तीसरा उपधान- शक्रस्तव नामक तीसरे उपधान में अट्ठम तप या उस परिमाण जितना तप पूर्ण होने के बाद क्रमशः दो, तीन, चार पदवाली तीन संपदाओं की पहली वाचना, सोलह आयंबिल होने के बाद पाँच-पाँच पदवाली तीन संपदाओं की दूसरी वाचना और पुनः सोलह आयंबिल का तप होने के बाद दो, चार एवं तीन पदवाली तीन संपदाओं की तीसरी वाचना दी जाती है तथा